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(१२०) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्बनाये रहताहै, श्रीकृष्णके समान कुंज (वन उपवनोंमें) विहार करताहै अथवा भक्तिसे भगवान्के भवनमें प्राप्त होता है. समस्त लोकोंमें श्रेष्ठता पाताहै. समृद्धिमें कुबेरके समान होताहै. इतने पूरे फल मनुष्योंको बृहस्पतिके प्रकाशावस्था उच्चादिमें प्राप्त होनेसे होते हैं ॥ ४॥ । साहसी भवति मानवः सदा मित्रपुत्रसुखपूरितो मुदा ॥ पण्डितो विविधवित्तमण्डितो वेदविद्यदि गुरौ गमं गते ॥५॥ बृहस्पति गमनावस्थामें हो तो मनुष्य सर्वदा साहसी तथा मित्र पुत्र सुखसे परिपूर्ण रहे,पंडित होवे, अनेक प्रकारके धनोंसे शोभित रहै और वेदको जाने ॥५॥
आगमने जनता वरजाया यस्य जनुःसमये हरिमाया ॥ मुंचति नालमिहालयमद्धा देवगुरौ परितः परिबद्धा ॥६॥ जिस मनुष्यके जन्मसमयें बृहस्पति आगमावस्थामें हो तो उसके बहुत मनुष्य रहें, स्त्री श्रेष्ठ मिले, उसके घरको साक्षात् लक्ष्मी कदापि न छोडे चारों ओरसे बँधी हुई जैसी रहे ॥६॥ सुरगुरुसमवक्ताशुभ्रमुक्ताफलाड्यः सदसि सपदि पूर्णों वित्तमाणिक्ययानैः ॥ गजतुरगरथाढयो देववाधीशपूज्ये जनुषि विविधविद्यागवितो मानवः स्यात्॥७॥
बृहस्पति जन्ममें सभावस्थामें हो तो बुहस्पतिके समान शास्त्रवक्ता पंडित होवे,शुभ्र (श्वेत) मोतियोंसे युक्त रहे.धन, मणि,सवारी आदियोंसे सर्वदा परिपूर्ण रहे. हाथी, घोडे स्थोंसे युक्त रहे और वह मनुष्य अनेक विद्याओंसे गर्वित (भराहुआ) रहे ॥ ७ ॥
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