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द्वादशः १२]
भाषाटीकासमेतम् ।
( १२३ )
यदि शुक्र उपवेशनावस्थामें हो तो नवीन मणियोंके समूह एवं सुवर्ण के भूषणोंसे सौख्य अनवरत रहे. शत्रुओं का क्षय होवे राजासेभी आदरपूर्वक मानकी उन्नति होवे ॥ २ ॥ नेत्रपाणिगते लग्नगेहे कवौ सप्तमे मानभे यस्य तस्य ध्रुवम् ॥ नेत्रपातो धनानामलं चान्यभे वासशाला विशाला भवेत्सर्वदा ॥ ३ ॥
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यदि शुक्र नेत्रपाणिअवस्था में लग्न, सप्तम दशममें हो तो उस मनुष्यका नेत्र गिरे तथा निश्चय धनभी क्षय होवे, यदि अन्य भावों में हो तो उसके निवासका गृह बहुत बडा सर्वदा रहे ॥ ३ ॥ स्वालये तुङ्गभे मित्रभे भार्गवे तुङ्गमातङ्गलीलाकलापी जनः ॥ भूपतेस्तुल्य एवं प्रकाशं गते काव्यविद्या कलाकौतुकी गीतवित् ॥ ४ ॥ प्रकाशावस्थाका शुक्र जिस मनुष्य के स्वराशि २ । ७ उच्चराशि १२ अथवा मित्रराशिमें हो वह उन्मत्त हाथियोंकी लीला (क्रीडा) का प्रेमी होवे, तथा राजाके समान ऐश्वर्यवान् होवे, काव्यविद्या शृंगार आदि कलाओं में निपुण और गायन जाननेवाला होवे ||४|| गमने जनने शुक्रे तस्य माता न जीवति ॥ अधियोगो वियोगश्च जनानामरिभीतितः ॥ ५ ॥ जिसके जन्म में शुक्र गमनावस्थामें हो उसकी माता शीघ्रही मर जाती है. तथा शत्रुके भयसे कभी अपने मनुष्यों में रहे कभी उनसे पृथक् होना पडे ॥ ५ ॥
आगमनं भृगुपुत्रे गतवति वित्तेश्वरो मनुजः ॥ स तु तीर्थभ्र मशाली नित्योत्साही कराघ्रिरोगी च६ ॥ शुक्र आगमनावस्था में हो तो मनुष्य बहुत धनका स्वामी होवे
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