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द्वादशः १२] भाषाटीकासमेतम्। (१२५)
काव्यविद्यानवद्या च हृद्या मतिः सर्वदा नृत्य- | लिप्सां गते भार्गवे॥शंखवीणामृदंगादिगानध्वनिवातनैपुण्यमेतस्य वित्तोन्नतिः ॥ १० ॥
शुक नृत्यालिप्सावस्थामें हो तो प्रशंसनीय काव्यविद्या आवे, बुद्धि सर्वदा मनोहर ( रमणीय ) रहे, शंख, वीणा, मृदंग आदि बाजे एवं गायनकी ध्वनि (शब्दों) में निपुणता होवे, धन इसका सर्वदा बढताही रहे ॥ १० ॥ कौतुकभवनं गतवति शुक्रे शक्रेशत्वं सदास महत्त्वम्॥ | हृद्या विद्या भवति च पुंसःपद्मा निवसति पद्मोदरतः ११ /
शुक्र कौतुकावस्थामें हो तो इंद्रके समान ऐश्वर्य, पृथ्वीमें श्रेष्ठत्व पावे, सभामें बडप्पन मिले तथा उस पुरुषको रमणीय विद्या हो और लक्ष्मी आदरपूर्वक कमलका वास छोडकर उस मनुष्यके घरमें निवास करे ॥ ११॥
परसेवारता नित्यं निद्रामुपगते कवौ ॥ परनिन्दापरो वीरो वाचालो भ्रमते महीम् ॥ १२ ॥ निद्रावस्थामें शुक्र हो तो सर्वदा पराया सेवक रहे, पराई निन्दा करनेमें तत्पर होवे वीरता रक्खे वाचाल (अति बोलनेवाला) होवे तथा सारी पृथ्वीमें फिरता रहे ॥ १२ ॥
अथ शनेःप्रत्यवस्थाफलानि । क्षुत्पिपासापरिक्रान्तो विश्रान्तः शयने शनौ ॥ वयसि प्रथमे रोगी ततो भाग्यवतां वरः॥१॥
शनि जिसका शयनावस्थामें हो वह सर्वदा भूख प्याससे दबा रहे तथा श्रमयुक्त रहे पहिली अवस्था (छोटी उमर) में रोगी रहे, पीछे भाग्यवंतोंमें श्रेष्ठ होवै॥१॥
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