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दादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । (११७)
जिस मनुष्य के जन्म समयमें बुध गमनावस्थामें हो उसको नित्य गमागम (जाना, आना ) होता रहे, बहुतायत करके राजासे भूमि मिले, अनेक प्रकारकी शोभासे युक्त और लक्ष्मीसे पूर्ण गृह मिलै५॥
सपदि विदि जनानामुच्चभे जन्मकाले सदसि । धनसमृद्धिः सर्वदा पुण्यवृद्धिः॥ धनपतिसमता वा भूपता मन्त्रिता वा हरिहरपदभक्तिः सात्त्विकी मुक्तिरद्धा॥६॥ बुध जन्मकालका सभावस्थामें हो तो मनुष्योंको सर्वदा धनकी संपन्नता रहे, पुण्यकी उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहे, धनमें कुबेरकी समानता पावे अथवा ( राजत्व) हाकिमी मिले यद्वा (मंत्रिता) वजीरी मिले और विष्णु एवं शिवके चरणोंमें भक्ति हो और साक्षात् सात्त्विकी मुक्ति होवे ॥६॥
आगमे जनुषि जन्मिनां यदा चन्द्रजे भवति हीनसेवया ॥अर्थसिद्धिरपि पुत्रयुग्मता बालिका भवति मानदायिका ॥७॥ यदि मनुष्योंके जन्ममें बुध आगमावस्थामें हो तो नीचजनकी सेवा करनेसे कार्यसिद्धि होवे तथा दो पुत्र होवें और एक कन्या अति सुलक्षणा सन्मान देनेवाली होवे ॥७॥
भोजने चन्द्रजे जन्मकाले यदाजन्मिनामर्थहानिः
सदा वादतः ॥राजभीत्या कृशत्वं चलत्वंमते। रङ्गसङ्गो न जाया न मायाः सुखम् ॥ ८॥
बुध भोजनावस्थामें जन्मकालका हो तो मनुष्योंकी सर्वदा विवाद (कलह) से धनहानि होवे, राजाके भयसे कृशत्व (माडापन) आवै, बुद्धि चंचल रहे (स्थिर न रहे) तथा स्त्रीका सुख और धनका सुख भी न होवे ॥८॥
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