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(११६) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्
शशांकपुत्रे जनुरङ्गगेहे यदोपवेशे गुणराशिपूर्णः॥ पापेक्षिते पापयुते दरिद्रो हितोच्चभे वित्तसुखी मनुष्यः ॥२॥ बुध जन्ममें लगका उपवेशावस्थामें हो तो समस्त गुणोंके समूइसे पूरित रहे, पापदृष्ट अथवा पापयुक्त हो तो दरिद्री होवे, यदि मित्रराशि वा उच्चराशिमें हो तो मनुष्य धनसे सुखी रहे ॥२॥ विद्याविवेकरहितो हिततोषहीनोमानी जनो भवति चन्द्रसुतेऽक्षिपाणौ॥ पुत्रालये सुतकलत्रसुखेन हीनः कन्याप्रजो नृपतिगेहबुधो वरायः ॥३॥
बुध नेत्रपाणि अवस्थामें हो तो मनुष्य विद्या एवं विवेक (सदसज्ज्ञान) से रहित होवे, भलाई किसीकी न करै संतोषभी न रक्खे, गर्ववाला होवे.यदि उक्त बुध पञ्चमभावमें हो तोपुत्र और स्त्रीके सुखसे हीन रहे, कन्या संतति होवे, राजद्वारका पंडित तथा श्रेष्ठ होवे॥३॥ दाता दयालुः खलु पुण्यकर्ता विकासने चन्द्रसुते मनुष्यः अनेकविद्यार्णवपारगन्ता विवेकपूर्णःखलगर्वहन्ता ॥४॥
बुध विकासावस्थामें हो तो मनुष्य दाता (देनेवाला ) दयावान्, निश्चयसे पुण्य करनेवाला और अनेक विद्याओंके समुद्रके पार पहुँचनेवाला, विवेकसे परिपूर्ण, दुष्टोंके गर्व (घमंड) का तोडनेवाला होवे ॥४॥
गमनागमने भवतो गमने बहुधा वसुधा वसुधाधिपतः॥ भवनं च विचित्रमलं रमया विदिनुश्च जनुः समये नितराम् ॥५॥
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