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दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् । यदि नाभेरधोभागे तिलकं लांछनं स्फुटम् । सौभाग्यसूचकं ज्ञेयं मशको वा नतभ्रुवाम् ॥११२॥
यदि नम्र भृकुटीवाली स्त्रियोंके नाभीके नीचे तिल अथवा लांछन प्रकट हो तो सौभाग्य जनाता है अथवा मसा हो तो भी ऐसाही फल करता है ॥ ११२॥
यदि करे च कपोलतलेऽथवा भवति कण्ठगतं तिलकं तदा । श्रुतितलेऽपि च सा पतिवल्लभा वरशी मशकामललांछनः॥ ११३ ॥ जिस सुनेत्रास्त्रीके हाथकी हथेलीमें, या गालमें अथवा कंठमें यद्वा कानके नीचे तिल हो तो वह स्त्री पतिकी प्यारी होवे ऐसेही मसा आदि निर्मल लांछनसे जानना ॥ ११३॥
भालस्थेन त्रिशूलेन शंभुना निर्मितेन वै। यस्याःसाऽऽलीसहस्राणामीशितामानुयादरम् ११४ जिस भाग्यवती स्त्रीके माथेमें शिवजी कृपा करके त्रिशूलाकार रेखाका चिह्न करदें तो वह हजारहों( आली) सखियोंकी स्वामिनी होवे अर्थात् अतीव ऐश्वर्यवती होवै ॥ ११४॥ किटकिटे तिलकं कुरुते मिथः शुभदृशः शयने तु रदावली । महदमङ्गलमाह विशेषतः प्रियतमे तनुलक्षणकोविदाः ॥ ११५ ॥ जिस सुदृशी स्त्रीके दोनों पंक्तिके दांत सोयेमें किट किट शब्द करें अर्थात् दाँत परस्पर लडें तो उसके पतिको महान् अमंगल होताहै, यह विशेष दुर्लक्षण है,शरीरके लक्षणोंके जाननेवाले पंडित लोगोंने कहा है ॥ ११५॥
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