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एकादशः ११ ]
भाषाटीकासमेतम् ।
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जन्मकालमें जिस किसी भावमें स्थित शनि जिस अवस्थामें प्राप्त हो उस अवस्थाके नामसदृश शुभाशुभफल विशेष करके देता है ११ राहु केत्वोरवस्था |
नवमे मदने वापि राहुराहुरिहाङ्गिनाम् ॥ महान्तो निद्रितोऽवश्यं पुण्यक्षेत्रनिवासिताम् १२ ॥ द्वितीये द्वादशे वापि लाभे वा सिंहिकासुते ॥ वसुधां भ्रमते मत्त्य विधनः शयने भवेत् ॥ १३ ॥ निजक्षेत्रे तु कविकुजगृहे मित्रभवने स्ववर्गे सद्वर्गे तमसि शयने जन्मसमये । फलं पूर्ण प्राहुः कथितभवनादन्यभवने तदा दृष्टप्रांस्तदिह शिखिनो राहुवदिदम् ॥ १४ ॥ जिन शरीरियोंके राहु ९/७ भावों में निद्रावस्था में हो तो उनको अवश्य पुण्य क्षेत्र में निवास मिले यह बडे आचार्य कहते हैं। यदि राहु शयनावस्था में २।१२।११ भावोंमें हो तो वह मनुष्य निर्द्धन रहकर पृथ्वी में भ्रमण करै । राहु यदि अपनी राशि |६ अपने उच्च ३ अथवा शुक्र के गृह २ । ७ या मंगलकी राशिमें १ । ८ में हो अथवा मित्रराशि में हो यद्वा अपने वा मित्रके अंशादियों में शयनावस्थाका जन्मकालमें हो तो फल पूर्ण देता है उक्त भवनोंसे अन्य गृहों में हो तो दुष्ट जनोंका पूज्य होवे । राहुके समान केतुका भी फल जानना ॥ १२-१४ ॥
अथ विशेषफलानि ।
यदि निद्रागतः पापः सप्तमे पापपीडितः ॥ तदा जायाविनाशः स्याच्छुभयोगेक्षणान्नहि ॥ १५ ॥ निद्रितो रिपुगेहस्थो रिपुयुक्तेक्षितो मदे ।
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