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द्वादश: १२]
भाषाटीकासमेत् ।
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बली सदा पापरतो नरः स्यादसत्यवादी नितरां प्रगल्भः ॥ धनेन पूर्णो निजधर्महीनो धरासुते चेदुपवेशनस्थे ॥ २ ॥
मंगल उपवेशनावस्था में हो तो मनुष्य बलवान् होवे सर्वदा पापकर्म में तत्पर, झूठ बोलनेवाला, निरंतर वाग्वादचतुर, धनसे परिपूर्ण, स्वधर्म से हीन होवे ॥ २ ॥
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यदा भूमिसुते लग्ने नेत्रपाणिमुपागते ॥ दरिद्रता सदा पुंसामन्यभे नगरेशता ॥ ३ ॥ यदि मंगल नेत्रपाणि अवस्थाके लग्नमें हो तो मनुष्यों को सर्वदा दरिद्रता रहे, अन्य भावमें हों तो नगरके स्वामी होवे ॥ ३ ॥ प्रकाशो गुणस्य प्रवासः प्रकाशे धराधीशभर्तुः सदा मानवृद्धिः॥ सुते भूसुते पुत्रकान्तावियोगो युते राहुणा दारुणो वा निपातः ॥ ४ ॥
मंगल प्रकाशावस्था में हो तो गुणका प्रकाश होवे, परदेशमें नित्य निवास होवे, राजासे सर्वदा मान बढता रहै, यदि उक्त अवस्थाका मंगल पंचमभावमें हो तो स्त्री, पुत्रका वियोग (बिछोह ) पावे, यदि उसके साथ राहुभी हो तो वृक्षादिसे गिरपडे ॥ ४ ॥ गमने गमनं कुरुतेऽनुदिनं व्रणजालभयं वनिताकलहम् ॥ बहुदद्रुककण्डुभयं बहुधा वसुधातनयो वसुहानिमंरेः ॥ ५॥
मंगल गमनावस्था में हो तो प्रतिदिन गमन ( सफर ) करता है, अनेक प्रकारके व्रणका भय, स्त्रीकलह करता है और दाद, खुजलीको भी बहुत करता है शत्रुसे धनहानि होती है ॥ ५ ॥
१ करः इ० पाठातरम् ।
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