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द्वादशः १२]
भाषाटीकासमेतम् ।
( १०७ )
जिसके जन्ममें सूर्य प्रकाशनावस्थामें हों वह उदारचित्त (देनेवाला) होवे, धनसे परिपूर्ण (संपन्न) रहे, सभामें चातुर्यसहित वार्ता करे, बहुत पुण्य करे, बडा बलवान् होवे, सुन्दररूपवान् होवे ॥ ४ ॥ प्रवासशाली किलं दुःखमाली सदालसी धीधनवर्जितश्च ॥ भयातुरः कोपपरो विशेषाद्दिवाधिनाथे गमने मनुष्यः ॥ ५॥
यदि सूर्य गमनावस्था में हो तो मनुष्य नित्य परदेश रहनेवाला होवे निश्वय सर्वदा अनेक दुःखोंसे युक्त रहै, आलसी (निरुद्यमी ) बुद्धि और धन से रहित रहे, भयसे आतुर रहै, विशेषता से कोप ( गुस्सा ) युक्त रहे ॥ ५॥
परदाररतो जनतारहितो बहुधाऽऽगमने गमनाभिरुचिः ॥ कृपणः खलताकुशलो मलिनो दिवसाधिपतौ मनुजः कुमतिः ॥ ६ ॥
सूर्य जिसके जन्म में आगमनावस्था में हो वह पराई स्त्रियोंमें तत्पर रहे, बहुत मनुष्योंकी संगतिसे रहित ( अकेला ) रहे, बाहुल्यसे गमन ( सफर) की इच्छा किया करे, कृपण (मूंजी ) होवे, दुष्टतामें निपुण और मलिन भी होवै ॥ ६ ॥
सभागते हिते नरः परोपकारतत्परः सदाऽर्थरत्न पूरितो दिवाकर गुणाकरः ॥ वसुन्धरानवान्बरालयान्वितो महाबली विचित्रवत्सलः कृपाकलाधरः परः ॥ ७ ॥ जिस मनुष्यका मित्रस्थानस्थित सूर्य सभावस्थामें हो वह पराये उपकार करनेमें तत्पर रहे, सर्वदा धन एवं रत्नोंसे भरा रहे,
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