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(११०) मावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्मन्द (जड) बुद्धि होवे, विशेषतः धनसे हीनरहे, कठोर स्वभाव होवे, पराया नाश करे,पराया धन लुटानेवाला भी वह मनुष्य होवेर नेत्रपाणौ क्षपानाथे महारोगी नरो भवेत् ॥ अनल्पजल्पको धूर्तः कुकर्मनिरतस्सदा ॥३॥ चन्द्रमा जिसका नेत्रपाणिअवस्थामें हो वह मनुष्य महारोगी ( राजरोग आदि बडे रोगवाला) होवे तथा बहुत वाचाल, धूर्त होवे और सर्वदा कुकर्मोंमें तत्पर रहे ॥३॥ । यदा राकानाथे गतवति विकासं च जनने विकासः संसारे विमलगुणराशरेवनिपात् ॥ नवा शालामाला करितुरगलक्ष्म्या परिवृता विभूषायोषाभिः सुखमनुदिनं तीर्थगमनम् ॥४॥
यदि जन्ममें चंद्रमा विकासावस्थामें हो तो मनुष्य संसारमें निर्मलगुणोंके समूहसे विकसित (प्रफुल्लित ) रहे तथा राजासे हाथी घोडे और धनोंसे संयुक्त, नवीन मकानोंका समूह मिलै एवं भूषण और स्त्रियोंसे नित्य सुख पावे तथा तीर्थ यात्रा करे ॥४॥ सितेतरे पापरतो निशाकरे विशेषतः क्रूरतरो नरो भवेत्॥सदाक्षिरोगैः परिपीडयमानोवलक्षपक्षे गमने भयातुरः॥५॥ यदि कृष्णपक्षका चंद्रमा गमनावस्थामें हो तो विशेषतः मनुष्य अतिकूर स्वभाववाला होवै सर्वदा नेत्ररोगसे पीडित रहे और शुकपक्षका हो तो सर्वदा भयातुर रहे ॥५॥ विधावागमने मानी पादरोगी नरो भवेत् ॥ गुप्तपापरतो दीनो मतितोषविवर्जितः॥६॥
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