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(१०८) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्गुणोंकी खान होवै पृथ्वी (जमीन) का मालिक होवे, नवीन वस्त्र
और घरोंसे युक्त रहे, बडा बलवान होवै, अनेक प्रकारके मित्र रक्खे और उनका प्रिय होवे और परम कृपाकी कला उसके हृदयमें जागृत रहै ॥७॥
क्षोभितो रिपुगणैः सदा नरश्चञ्चलः खलमतिः कृशस्तथा ॥ धर्मकर्मरहितो मदोद्धतश्चागमे दिनपतौ यदा तदा ॥ ८॥ सूर्य जिसका आगमअवस्थामें हो वह शत्रुसे कंपायमान रहै, चञ्चल होवै, कुटिलबुद्धि (दुष्टता करनेवाला) होवै,शरीर कृश रहै, धर्मकर्मसे रहित रहे मदसे उछलता रहे ॥८॥
सदाङ्गसन्धिवेदना पराङ्गनाधनक्षयो । बलक्षयः पदे पदे यदा तदा हि भोजने ॥
असत्यता शिरोव्यथा तथा वृथान्नभोजनं रखावसत्कथारतिः कुमार्गगामिनी मतिः॥ ९॥ सूर्य भोजनावस्था में जिसका हो उसके सर्वदा शरीरकी सन्धियोंमें पीडा रहे, परस्त्रीके संसर्गसे धन एवं बलका क्षय पैर पैर पर हो, असत्यवादी हो, शिरमें रोग रहे, खायापिया व्यर्थ जावे, यदा अन्न पचे नहीं,अनिष्टवार्ता में रुचि रहे, कुमार्गचलनेकी बुद्धि होवे९ विज्ञलोकैः सदा मंडितः पंडितः काव्यविद्यानवद्यप्रलापान्वितः॥राजपूज्यो धरामण्डले सर्वदा नृत्यलिप्सांगते पद्मिनीनायक ॥१०॥ जिसका सूर्य नृत्यलिप्सावस्थामें हो वह सर्वदा विद्या जाननेवाला लोगोंसे शोभित रहे, पंडित होवे, काव्यविद्यामें बडी वाचाल शक्ति होवे, राजासे पूजा(आदर) पावै,पृथ्वीमेंभी पूज्य होवे ॥१०
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