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एकादश: ११ ]
आपाटीका समेतम् ।
(१०५)
जिसके अष्टमस्थान में राहुसहित मंगल शनि हों इनमें से कोई निद्रावस्थामें हो तो उसकी अपमृत्यु शस्त्रके कटने से होवे, इसमें संदेह नहीं ॥ १९ ॥ जिसके अष्टमभाव में शुभग्रहभी पाप अथवा शत्रुग्रहसे दृष्ट वा युक्त हो तो उसकी मृत्यु संग्राम में शस्त्रसे होवे ( यहां भी संबंध से निद्रावस्था विचारणीय है ) ॥ २० ॥ अथारिकृततीर्थकृतमृत्यु योगौ ।
यदा निद्रायुक्तो निधनभवनं पापमिलितः शयानो वा मृत्युं व्रजति रिपुकोपेन मनुजः ॥ शुभैर्दृष्टो युक्त निजपतियुतो वान्तसमये नरो गङ्गामेत्य व्रजति हरिसायुज्यपदवीम् ॥ २१ ॥ यदि कोई ग्रह पापयुक्त अष्टमस्थान में निद्रावस्था में या शयनावस्था में हो तो शत्रुके कोपसे मृत्यु पावे और वही ग्रह शुभग्रहों से दृष्टवा युक्त हो अथवा अष्टमेश अष्टम हो तो मृत्युसमय में वह मनुष्य गंगा पायकर विष्णुका सायुज्यपद (मुक्ति ) पावे ॥ २१ ॥ अथ पुण्यक्षेत्रलाभयोगः ।
यदा पश्येदंगं तनुभवननाथोष्टमपतिमृतिं धर्माधीशो जनुषि च तपःस्थानमथवा ॥ शुभाभ्यामाक्रान्तं नवमभवनं पापरहितं वरक्षेत्रं प्राप्य व्रजति मनुजो मोक्षपदवीम् ॥ २२ ॥ इति श्रीभावकुतूहले स्थानवशेनावस्थाफलकथनं नामैकादशोऽध्यायः ॥ ११ ॥
यदि जन्मसमय में लग्नेश लग्नको, अष्टमेश अष्टमभावको और नवमेश नवम भाव को देखे अथवा इनमें से एकभी अपने स्थानका देखनेवाला हो तथा दो शुभग्रहों से युक्त, पापोंसे रहित नवम हो तो मरणसमय में उत्तम क्षेत्र (पुण्यस्थान) पायके मुक्तिपदको प्राप्त हो२२ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां स्थानवशेनावस्थाफलाऽध्यायः ॥ ११ ॥
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