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दशमः १.] भाषाटीकासमेतम् । भी सर्व नाश करे, बांझिनी होवे और अपने कुलका नाश करनेवाली होवे ॥१०४॥
केशलक्षणम् । केशा यस्या भ्रमरपटलोपेक्षवर्णाः सुवर्णा वक्राकाराः कुवलयदृशः किंचिदाकुञ्चिताग्राः। भाग्यं सयो ददति विरलाः पिंगलाः स्थूलरूपा रुक्षाकाराः परमलघवो बन्धवैधव्यदःखम ॥१०५॥
जिस कमलयननीके शिरके केशभ्रमरसमूहोंके उपेक्षा करनेवाले अर्थात् अति कृष्णवर्ण तथा चमकीले और मुडेहुए तथा कुंचित थोडे मुडेहुए अग्रभागवाले होवें तो भाग्य (ऐश्वर्य) देते हैं, यदि छोटे हों पीले भूरेरंगके, मोटे, रूखे हों अथवा आतिही छोटे हों तो वैधव्य, बंधन आदि दुःख देते हैं ॥ १०५ ॥
तिलमशकादि। मशकापि ललाटपट्टवर्ती यदि जागर्ति स मध्यगो भ्रुवोर्वा । तनुते सुखमर्थराशिभोगं सततं पत्युरपत्यभृत्ययोश्च ॥ १०६॥ जिसके मस्तकमें मसा (चर्मविकारसे छोटा व्रण सरीखा) हो अथवा वह भ्रुकुटीके बीचमें हो तो सुख, अतिधनी, अनेकभोग और सर्वदा पति, पुत्रका सुख पाती है ॥ १०६॥ .. मशकोऽपि कपोलमध्यगामी सुदृशोलोहित एवमिष्टदः स्यात् । हृदयं तिलकेन शोभितं लसनेनापि च राज्यकारणम् ॥ १०७॥ जिसके गालके बीचमें मसा लालरंगका हो तो इष्टसिद्धि करता है, यदि हृदयमें तिल वा लसन चिह्न हो तो राज्य देताहै ॥ १०७॥
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