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दशमः १०] आषाटीकासमेतम् ।
(८९) जिसके पलक रोमरहित हों अथवा कहीं स्वल्प रोम हों तथा नीचेको लंबायमान एवं कपिलवर्ण हों अथवा मोटे केशवाले हों तो वह कामिनी परपुरुषगामिनी होवै ॥ ९७॥ वर्तुला कोमला श्यामा भूर्यदा धनुराकृतिः॥ अनंगरंगजननी विज्ञेया मृदुलोमशाः॥९८॥ जिसकी भ्रुकुटी (भौंह ) गोल, कोमल, श्यामरंग और धनुषके समान घूमें हुए हों वह कामक्रीडामें पतिको सुख देनेवाली होती है तथा भ्रुकुटीपर कोमल रोमोंसेभी यही फल है ॥ ९८॥
भूलक्षणम् । पिङ्गला विरला स्थूला सरला मिलिता यदि ॥ दीर्घलोमा विलोमा च न प्रशस्ता नतभ्रवः॥१९॥ जिस स्त्रीके भृकुटीपर भूरे केश हों यदा विरल केश हों मोटी हों, सीधी हों, दोनों भृकुटी मिली हों अथवा लंबे केशवाली हों, यदा विना केशकी हो तो यह शुभलक्षण नहीं है वह स्त्री दुर्लक्षणा होती है. झुकी हुई भ्रुकुटीवालीभी ऐसेही होती है ॥ ९९ ॥
कर्णलक्षणम् । प्रलंबौ वर्तुलाकारौ कौँ भद्रफलप्रदौ॥ शिराला च कृशौ निंद्यौशष्कुलीपरिवर्जितौ १००॥ जिस स्त्राक कानलंबे गालाकार (गिर्द ) हों तो शुभफल देनेवाले होते हैं, जिनपर शिर। (नसों) बहुत प्रगट हों, माडे हों तथा फेणीकाकार न हों तो निन्द्य हैं अर्थात् अशुभफल देते हैं ॥१००॥
__ ललाटलक्षणम्। उन्नतस्यंगुलो भालः कोमलश्च नतभ्रुवाम् ॥ अर्द्धचंद्रनिभो नित्यं सौभाग्यारोग्यवर्धकः॥१०॥
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