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दशमः १० ]
भाषाटीकासमेतम् ।
(१५)
सीमंते च ललाटे वा कण्ठ वापि नतभ्रुवः । लोम्नामावर्त्तको दक्षो वामो वैधव्यसूचकः ॥ ११९॥
माथे के ऊपर के प्रांतस्थान में अथवा माथेमें अथवा कण्ठमें जिस सुनके रोमावर्त्त ( भौंरा ) दाहिने ओर अथवा बायें ओर घुमाववाला हो तो वैधव्य जाननेवाला होता है ॥ ११९॥
शुभाशुभलक्षणहेतुः ।
याभिरेव वरदो महेश्वरः पूजितः किल पुरा व्रतादिभिः ॥ पार्वती च परिपूजिता मुदा भक्तियोगविधिना सुवासिनी ॥ १२० ॥ भूषितामलविभूषणादिभिः क्षालितं वपुरनेकधा पुरा ॥ तीर्थराजपयसा भवंति ता लक्षणैरिह शुभाः सुलक्षणाः ॥ १२१ ॥
जिन स्त्रियोंने पूर्वजन्म में व्रतादिकोंसे शिवजीका पूजन किया हो तथा प्रसन्नतापूर्वक पार्वतीजीका भी पूजन किया हो और भक्तिभावसे, योगसाधनविधिसे आराधन किया हो (सुवासिनी) सौभाग्य वतीका पूजन उमात्रत आदिकोंसे किया हो उनको वस्त्र, भूषणादि अलंकार दिये हैं अथवा तीर्थराज प्रयागादिकों के जलसे शरीर अनेक वार प्रक्षालित किया हो वे उक्त शुभलक्षणोंसे युक्त लक्षित, सुलक्षणा होती हैं अर्थात् जिन्होंने पहिले बडे पुण्य किये हैं वही भाग्य, ऐश्वर्यवती होती हैं, उन्होंके उक्त शुभचिह्न लक्षण होते हैं १२०-१२१ कृतं नहि तपो यया नगजया समाराधितो हरिर्नहि रविव्रतं नहि कृतं च तीर्थाटनम् ॥ धनं नहि धरामरे परममर्पितं तर्पितं गुरोः कुलमिहाङ्गना भवति सैव दीनाङ्गना ॥ १२२ ॥
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