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दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् । (९७).
शुभेऽहनि कुमारिकाकरनिपीडनं कारयेद्वरेण चिरजीविना पुनरिदं न दोषायते ॥ इदं तु बहुसंमतं मुनिवरेण गीतं पुनः प्रमाणपटुनादृतं प्रियविनोदकंदप्रदम् ॥ १२६ ॥ ऐसे अश्वत्थ विवाह तथा विष्णुप्रतिमाविवाह वा घटविवाह करनेके उपरांत शुभदिन मुहूर्तमें उस कन्याका चिरजीवित्वकारक ग्रहवाले वरके साथ विवाह करना; इसमें पुनर्विवाहका दोष नहीं होता (और दुर्लक्षण एवं वैधव्य योगोंका फल निराकरण होजाताहै. यह विधिबहुत आचार्योंके संमत है, श्रेष्ठ मुनिसे कहा हुआहै तथा उत्तम विद्वानोंसे आहत है और स्वामीको आनन्दप्रद है॥२६॥
कुलक्षणैः कुयोगैश्च लक्षिता वनिता यदा॥ तस्याः पूर्वविधानेन विवाहं कारयेद्बुधः॥ १२७॥ सामुद्रिकोक्तकुलक्षणोंसे यद्वा जातकोक्त कुयोगोंसे लक्षित जो कन्या हो उसका पूर्वोक्तविधिसे विवाहकरना (इससे सुहाग बढता है दुर्लक्षण दुर्योगोंका उपाय यही है ) ॥ १२७॥
जीवनाथविदुषात्र कामिनीलक्षणं बुधमनोमुदे मया । स्कंदकुम्भभवयोर्विवादजं व्यासगीतमखिलं प्रकाशितम् ॥ १२८॥ इति श्रीजीवनाथविरचिते भावकुतूहले स्त्रीसामुद्रिकाध्यायो दशमः ॥
ग्रंथकर्ता आचार्य पंडित जीवनाथ कहताहै कि मैंने बुधजनोंक मनप्रसन्न करनेके लिये इतने स्त्रीलक्षण स्कंद और अगस्तिके प्रश्नोतर व्यासदेवजीके कहे अनुसार समस्त प्रकाशित किया है॥१२८॥
इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां स्त्रीसामुद्रिकाऽध्यायः ॥ १०॥
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