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(८८)
भावकुतूहलम् -
[ स्त्रीसामुद्रिक:
पिंगाक्षी च कपोताक्षी दुःशीला कामवर्जिता || कोटराक्षी महादुष्टा रक्ताक्षी पतिघातिनी ॥ ९३ ॥ पीले नेत्र यद्वा पिंगलपक्षी केसे नेत्रवाली तथा कपोतपक्षीके से नेत्रवाली दुष्टप्रकृति, कामरहित होवै, जिसके नेत्र कोटरके समान गहरे हों वह बडीही दुष्टा होवे और लाल नेत्रवाली विधवा होती है९३
बिडालाक्षी गजाक्षी च कामिनी कुलनाशिनी ॥ वन्ध्या च दक्षकाणाक्षी पुंश्चली वामकाणिका ॥९४ it कामिनी बिल्ली के समान अथवा हाथीके समान नेत्रवाली हो, वह कुलका नाश करती है। जिसकी दाहिनी आँख काणी फूटी वा किसी प्रकार गई हो तो वह बांझ और वाम आंख काणी से व्याभचारिणी होवे ॥ ९४ ॥
सदा धनवती नारी मधुपिङ्गललोचना ॥ पुत्रपौत्रसुखोपेता गदिता पतिसंमता ॥ ९५ ॥
जिस स्त्रीके नेत्र सहतसमान पीले हों वह सर्वदा धनवती रहे तथा पुत्रपौत्रोंके सुखसे युक्त और पतिके संमत हो ऐसा आचाने कहा है ॥ ९५ ॥
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पक्ष्मलक्षणम् ।
कोमलैरसिताभासैः पक्ष्मभिः सुधनैरपि ॥ लघुरूपधरैरेव धन्या मान्या पतिप्रिया ॥ ९६ ॥ जिस स्त्रीके पलक कोमल हों, श्याम हों तथा घनभी हों आरे छोटे रूपको धारण किये हों वह स्त्री धन्य है. लोकमें माननीय तथा पतिकी प्रिया होवै ॥ ९६॥
रोमहनैिश्च विरलैलम्बितैः कपिलैरपि ॥ पक्ष्माभिः स्थूलकेशैश्च कामिनी परगामिनी ॥९७॥
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