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(८६) भावकुतूहलम्
[ स्वीसामुदिक:तालुलक्षणम् । तालु कोकनदाभासं कोमलं भद्रकारकम् ॥ नारी प्रवजिता पीते सिते वैधव्यमाप्नुयात् ॥ ८५॥ जिसकी तालु कमल (रक्तोत्पल) के समान रंग और कोमल हो वह मंगलसूचक होती है । यदि तालु पीतवर्ण हो तो स्त्री प्रवजिता (फकीरनी) होवै, श्वेतवर्ण हो तो वह स्त्री विधवा होवै ८५॥
श्यामले पुत्रहींना च रूक्षे तालुनि दुःखिता ॥ वक्रे कलिप्रिया नारी बहुरूपे च दुर्भगा ॥ ८६ ॥ जिस स्त्रीके तालु कृष्णरंगका हो तो वह पुत्ररहित होतीहै.रूक्ष हो तो दुःखित रहै. जिसका तालु टेढा हो वह कलिप्रिया (कलहमें शौक रखनेवाली) होवै जो तालुके अनेक रूप रंग हों तो दुर्भगा (दरिद्रा कुलकलंकिनी भी होवै ॥८६॥
___ कण्ठमूलम् । क्रमसूक्ष्मारुणा वृत्ता स्थूला घंटी शुभा मता ॥ अतिस्थूला प्रलंबा च कृष्णा नैव शुभा भवेत्॥८७॥ घंटिका ( कंठमूल) का प्रथमभाग स्थूल तदुत्तर क्रमसे सूक्ष्म तथा लालरंगकी, गोलाकार, मोटी शुभ होती है, जो घंटिका अति स्थूल बहुतलंबी कृष्णरंगकी हो तो वह शुभ नहीं होती ॥ ८७॥
स्मितलक्षणम् । भवति चेदनिमीलितलोचनं शुभदृशां दरफुल्लकपोलकम् ॥ अलमलक्षितदन्तमुदीरितं पविहितं सतवं स्मितमुत्तमम् ॥ ८८॥ जिस स्त्रीके मुसकुरानमें आँख बन्द न हों तथा कपोल थोडे प्रफुल्लित होजायँ और दाँत देखनेमें न आवे तो वह मुसकुरान सर्वदापतिको हितकारी (शुभदायक ) कहाहै ॥ ८८॥
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