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दशमः १०] भाषाटीकासमेत् । (८५)
दन्तलक्षणम् । उपर्यधः समा दन्ताः स्तोकरूपाः पयोरुचः॥ द्वात्रिंशदास्यगा यस्याःसा सदा सुभगा भवेत् ८॥
जिस स्त्रीके मुखमें दांत ऊपर तथा नीचेके सम हों और छोटे हों तथा दूधके समान कांतिमान हों गिनतीमें बत्तीस हों तो वह सर्वदा सौभाग्यवती रहती है ॥ ८॥
अधोदंताधिकत्वेन मातृहीना च दुःखिता ॥ विधवा विकटाकारैः स्वरिणी विरलद्विजैः ॥ ८२ ॥ जिसके नीचेके दांत गिनतीमें ऊपरके दांतोंसे अधिक हों तो मातासे हीन एवं दुःखितभी रहे यदि दांत (विकटरूप ) कुरूप हों तो विधवा होवे और दांत (छोटे) बीचमें अंतराल सहित हों तो विधवा होवे और दांत (छोटे) बीचमें अंतराल सहित हों तो व्यभिचारिणी होवे ॥८२॥
जिहालक्षणम्। कोमला सरला रक्ता श्वेता च रसना शुभा॥ स्थूला या मध्यसंकीर्णा विकृता सुखनाशिनी॥८३॥ जिस स्त्रीकी जीभ कोमल,सरल और लाल,वा श्वेतरंगकी अथवा रक्त श्वेत मिलेहुये रंगकी शुभ होती है, जो जीभ आयंतमें मोटी बीचमें माडी हो तथा विकृतरूप हो तो सुखका नाश करतीहै ८३ श्यामया कलहा नित्यं दरिद्रा स्थूलया भवेत् ॥ अभक्ष्यभक्षिणी ज्ञेया जिह्वया लंबमानया ॥ ८४॥ जिसकी जिह्वा श्याम रंगकी हो वह नित्य कलह करनेवाली होवे, जिसकी जिह्वा मोटी हो वह दरिद्रा होवै और जिसकी जिह्वा लंबी हो वह अभक्ष्यभक्षिणी (न खानेके योग्य ) वस्तु खानेवाली होवै॥८॥
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