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दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् । (८३) पृष्ठवंश सरल (सीधा) मांससे भरा हुआ हो तथा ऊंचा हो तो वह पतिव्रता पतिको मंगल करनेवाली मोती आदित्नोंके भूषणोंसे शोभित रहै, पतिकी अतिप्यारी होवे, अच्छा शील (स्वभाव) होव, श्रेष्ठसखियोंसे युक्त रहे ॥७१॥७२॥
कण्ठलक्षणम् । कण्ठो वर्तुलरूपः कमनीयः पीनतायुक्तः। चतुरंगुलश्चयस्याःसा निजभर्तुः प्रिया भवति॥७३॥ जिस स्त्रीका कण्ठ (गला) मोल आकारकां, सुन्दरसुहावना तथा पुष्ट हो और लंबाईमें चार अङ्गुल हो तो वह अपने भर्तार्की प्यारी होती है ॥७३॥
ग्रीवा-लक्षणम् । गुप्तास्थिर्मासला ग्रीवा त्रिरेखाभिः समावृता। सुसंहता तदा शस्ता विपरीता न शोभना ॥७४॥
जो ग्रीवा (कण्ठ) मांससे पुष्ट हो अर्थात् हुड्डी जिसकी प्रकट न हों, त्रिवलीके समान तीन रेखाओंसे युक्त हो, दृढ हो तो शुभ होती है। इससे विपरीत माडी, ऊंची हड्डीवाली, कहीं नीची हो तो अशुभ होतीहै ॥ ७४॥ स्थूलग्रीवा धवत्यक्ता रक्तग्रीवा च दासिका। अपतिश्चिपिटग्रीवा लघुग्रीवार्थवर्जिता ॥ ७९ ॥ जिस स्त्रीका गला मोटा हो तो पतिसे त्यक्त रहै, गलेका लालरंग हो तो दासी होवै, जिसकी ग्रीवा चिपिट (चौडी) माडी हो वह विधवा होवे, जिसकी ग्रीवा छोटी हो (वह धनवर्जिता) दरिद्रा रहै ॥७९॥
हनुलक्षणम् । सुघना कोमला यस्या निर्लोमा च हनुः शुभा। लोमशा कुटिलालध्वीचातिस्थूला न शोभना॥७६॥
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