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(८२) भावकुतूहलम्
[स्त्रीसामुद्रिक:नखानि । शंखशक्तिनिभा निम्ना विवर्णा न नखाः शुभाः ॥ कपिला वक्रिता रूक्षाः सुभ्रवः सुखनाशकः ॥६॥ स्त्रीके नाखून यदि शंख यद्वा सीपके समान हों तथा बीचमें गहरे वर्णरहित हों तो शुभ नहीं होते, तथा कपिलवर्ण एवं मुडेहुए और रूखे भी हों तो सुखका नाश करतेहैं ॥ ६८॥
यदि भवंति नखेषु मृगीदृशां सितरुचो विरला यदि बिन्दवः ॥ अतितरां कुसुमायुधपीडया परजनेन लपति रमंति ताः ॥ ६९॥
मृगके समान हैं नेत्र जिनके ऐसी स्त्रियोकें नाखूनोंमें यदि श्वेतरंगके बिंदु (छींटे ) हों तो वे अतिही कामदेवकी पीडासे परपुरुषोंसे स्वयं बातचीत करे तथा रमितभी रहे ॥ ६९ ॥
पृष्ठलक्षणम् । गुप्तास्थिपृष्ठवंशेन मांसलेन पतिप्रिया ॥ रोममूलेन पृष्ठेन विधवा भवति ध्रुवम् ॥ ७० ॥ जिस स्त्रीके पीठकी हड्डी (कनकदण्ड ) मांसमें छिपी हो और पुष्ट हो तो पतिकी प्यारी होती है, यदि पीठपर बहुतरोम हों तो निश्चय विधवा होती है ॥ ७० ॥
सशिरेणातिभुग्नेन विनतेन च दुःखिता। सरलो मांसलो यस्याः पृष्ठवंशः समुन्नतः ॥७॥ सापत्युरनुभद्राख्या मुक्तालंकारमंडिता। अतिप्रिया सुशीला च वरालीभिः समावृता ॥७२॥ जिसका पृष्ठवंश शिरा (नसों ) से युक्त हो, कहीं ऊंचा कहीं नीचा हो तथा गहरा हो तो वह स्त्री दुःखित रहती है । जिसका
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