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नवमः ९]
भाषाटीकासमेतम् ।
परिक्रान्ते यस्या मदनभवने देवगुरुणा गुणज्ञा धर्मज्ञा निजपतिपदाब्जं भजति सा ॥ मणीनां मालाभिः कनकघटिताभिश्च शिरसा समाक्रान्ता कान्ता रतिपतिपताकेव शशिभे ॥ १५ ॥ जिसके जन्म में बृहस्पति सप्तमस्थान में बैठा हो वह (गुणज्ञा ) समस्त सुगुणवाली, धर्मजाननेवाली, अपने पतिकी सेवा करनेवाली " पतिव्रता " होवे और सुवर्ण में जडेहुये (मणि ) रत्नों की मालाओंसे शिर आक्रांत रहे यदि वह बृहस्पति सप्तम में कर्कका हो तो वह स्त्री कामदेवकी पताका जैसी उत्तमरूप गुणवती होवै १५ ॥ aat यस्या जन्मन्यपि मदनगे मीनभवने तदा कान्तो दान्तो रतिपतिकला कौतुकपटुः ॥ धनुर्द्धर्त्ता भर्त्ता स्वयमपि च सङ्गीतरसिका विलोला पद्माक्षी वसनलसिता भूषणवृता ॥ १६ ॥ जिसके जन्ममें मीनका शुक्र सप्तम भाव में हो उसका पति उदार, कामकला क्रीडामें चतुर तथा धनुष धारण करनेवाला होवे आप भी वह स्त्री गायनविद्याकी रसिका चंचलतासे भर्त्ताको प्रसन्न करने वाली, कमलदलसमाननेत्रा एवं उत्तम भूषण वस्त्रोंसे युक्त रहै ॥ १६ ॥ मदनभावगते तपनात्मजे पतिरतीव गदाकुलितो भवेत् ॥ मलिनवेषधरो विबलो महाअनुषि तुङ्गगते प्रवरो धनी ॥ १७ ॥
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जन्म में शनि सप्तम भाव में हो तो उसका पति अतिरोग पीडित होवै मलिन वेष धारण करने वाला, अति निर्बल होवे । यदि उक्त शनि उच्चका हो तो श्रेष्ठ और धनवान् होवे ॥ १७॥
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