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नवमः ९] भाषाटीकासमेत् । (५७) मृगागारे सारे गतवति विसारं सुरगुरौ कवौ वा पातालं तपनंतनयेनापि मिलिते ॥ जनुःकाले यस्याः करिमुकुटमुक्ताफलमाणव्रजानां मालाभिर्वलितमुत वक्षोजयुगलम् ॥२१॥ जिसके जन्मसमयमें मकरका मंगल, मीनका बृहस्पति प्राप्त हो अथवा शनिसहित शुक्र चतुर्थ हो तो हाथीके शिरसे उत्पन्न (गज मोती) मुक्ताफलोंसे सहित अनेकमणियोंकी मालाओंसे वेष्टित स्तनयुग्म रहैं ॥२१॥
वैधव्ययोगा। निशाकरात्सप्तमभावसंस्था महीजमन्दागुदिवाकराश्चेत्॥ तनोरभे जन्मनि नैधनं वा दिशन्ति वैधव्यमलं मदे वा ॥ २२॥ चन्द्रमासे सप्तमस्थानमें मंगल, शनि, राहु, सूर्य हों तो निश्चय वैधव्य करते हैं तथा जन्मलग्नमें शत्रुराशिक अथवा अष्टम या सप्तमस्थानमें हों तौभी वैधव्य देते हैं ॥२२॥
लग्नाधिपो वाथ मदालयेशो वर्गे गतः पापनभश्वराणाम् ॥ मदे तनौ वा खलखेटवर्गस्तदा कुलं मुञ्चति चञ्चलाक्षी ॥ २३ ॥ जन्मलग्नेश अथवा सप्तमेश पापग्रहोंके (वर्ग) राश्यंशकादिकोंमें हो अथवा लग्नमें एवं सप्तमभावमें पापग्रहके राश्यंशक हों तो वह स्त्री कुलको छोडदेवै अर्थात् कुलटा हो ॥२३॥
पापान्तराले यदि लमचन्द्रौ स्यातां शुभालोकनवर्जितो तौ ॥ अनङ्गलोला खलसङ्गमेन कुलदयं हन्ति तदा मृगाक्षी ॥२४॥ ।
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