________________
(६२) भाषकुतूहलम्- (स्त्रीजातकम् -
शनिराशौ। मन्दालये भूमिसुतस्य दासी शनरसाध्वी भवतीति साध्वी ॥ गुरोनिशानाथसुतस्य दुष्टा शुक्रस्य वंध्या क्रमतः प्रदिष्टा ॥ ३९॥ शनिके राशिमें लग्न, चंद्रमा, मंगलके त्रिंशांशकमें हों तो दासी होवे, शनिकेमें पतिव्रता न होवै, बृहस्पतिकेमें पतिव्रता, बुधकेमें दुष्टा, शुक्रकेमें(वंध्या)अपुत्रा होवे, इतने कमसे त्रिंशांशफल हैं३९॥
अन्ययोगाः। मंदैमध्यबले कवीन्दुशशिवर्यच्युतैःप्रायशः शेषैर्वीर्यसमन्वितैः पुरुषवनारी यदोजे तनुः ॥ जीवाङ्गाररवीन्दुजैर्बलयुतैश्चेदङ्गराशौ समे गीतातत्त्वविचारसारचतुरावेदांतवादिन्यपि॥४०॥ जिसके जन्ममें शनि मध्यबली, शुक्र, चंद्रमा, बुध, बलहीन, और विशेषतासे अन्यग्रह बलवान हों तथा लग्न विषमराशिका हो वह स्त्री पुरुषके समान होवे । यदि बृहस्पति, मंगल, सूर्य, बुध, बलवान हों तथा लग्नराशिसमसंज्ञक हों तो गीताका तत्त्व (ज्ञान) के विचारसे सार जाननेमें चतुरा और वेदांतवादिनीभी हो॥४०॥
____अष्टमभावविचारः। यदाष्टमे देवगुरौ भृगौ वा विनष्टगर्भा मृतपुत्रका वा ॥ कुजेऽष्टमे सा कुलटा मृगाक्षी चन्द्रेऽष्टम स्वामिसुखेन हीना ॥४१॥ यदि जन्ममें बृहस्पति अष्टम हो अथवा शुक्र अष्टम हो तो उसके गर्भ नष्ट हो, अथवा पुत्र मरें, यदि मंगल अष्टम हो तो वह मृगाक्षी (कुलटा) व्यभिचारिणी होवे, यदि चंद्रमा अष्टम हो तो पतिके सुखसे हीन रहै ॥११॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com