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दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् ।
मृदुला विपुला बस्तिः शोभना च समुन्नता॥ अशुभा रेखयाक्रान्ता शिराला लोमसंकुला ॥३२॥ (बस्ति) भग कोमल तथा बडा हो तो शुभ होता है, ऊँचीभी योनि शुभफल देतीहै जिसमें रेखा हों एवं नसें हों तथा रोमोंसे भरीहो तो अशुभफल देती है ॥ ३२॥
नाभिलक्षणम् । गभीरा दक्षिणावर्ता नाभी भोगविवर्धिनी ॥ व्यक्तग्रन्थिः समुत्ताना वामावतों न शोभना ॥३३॥ स्त्रीका नाभि यदि गहरी एवं दाहिनी ओर (मोड) घुमाववाली हो तो भोग बढाती है. जिसकी (ग्रंथि) गांठ प्रकट हो नाभी खुली हो यद्वा वामावर्त हो तो शुभ नहीं होती॥ ३३ ॥
उदरलक्षणम् । पृथूदरी यदा नारी मृते पुत्रान बहूनपि ॥ भेकोदरी नरेशानं बलिनं चायतोदरी ॥ ३४॥ जिस स्त्रीका पेट बडा हो वह बहुत पुत्र जनती है जिसका पेट मेंडककासा हो उसका पुत्र राजा होवे जिसका पेट बडे फैलावका हो उसका पुत्र बलवान होता है ॥ ३४॥
उन्नतेनोदरेणैव वन्ध्या नारी प्रजायते ॥ जठरेण कठोरेण सा भवद्भिदुकाङ्गना ॥ ३५ ॥ जिस स्त्रीका पेट ऊंचाहो वह बांझ होती है. जिसका उदर (कठोर ) कडाहो वह किसी नीचजातीविशेषकी पत्नी होवै ॥३५॥
आवर्तन युतेनैव दासिका भवति ध्रुवम् ॥ कोमलैमाससंयुक्तैः समानैः पार्श्वकैः शुभम् ॥३६॥ जिसके पेटमें ( आवर्त ) भौंरा हो वह दासी होवे यह
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