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(७६)
भावकुतूहलम्- [स्त्रीसामुदिक:
स्तनलक्षणम् । भवत एव समौ सुदृढाविमौ यदि घनौ सुदृशस्तु पयोधरौ ॥ निजपतेरनिशं परिवर्तुलौ कुसुमबाण विनोदविवर्धकौ ॥४३॥ यदि स्त्रीके दोनों स्तन समान एवं अच्छे ( दृढ) कडे, बहुत खूबसूरत, सुहावने हों तथा गोल हों तो अपने पतिको नित्य कामदेवके बाणोंके विनोद (हर्ष ) बढावनेवाले होते हैं ॥४३॥
सुभ्रुवो विरलौ सूक्ष्मौ स्थूलाग्रावहिताविमौ ॥ पयोधरौ तदा नााः प्रभवेद्दक्षिणोन्नतः॥४४॥ पुत्रदोप्यथ कन्यादो यदा वामोन्नतो भवेत् ॥ सन्तरालौ च विस्तारौ पीवरास्यो न शोभनौ॥४५॥ सुन्दर है भ्रुकुटि जिसकी ऐसी स्त्रीके स्तन यदि मिलेहुए न हों माडे हों स्थूलाग्र हों तो अशुभ हों और( दक्षिणोन्नत) दाहिने ओर झुके हों यद्वा दाहिना स्तन कुछ बडा हो तो पुत्र देनेवाली होती है। यदि (वामोन्नत) वाम ओर झुके यदा वाम स्तन कुछ बडा हो तो कन्या देते हैं जिन स्तनोंके बीचमें कुछ ( अंतराल) फासला हो तथा बडे हों उनके (मुख ) चूंची मोटी हों तो शुभ नहीं होते ॥४४॥४५॥
मूले स्थूलो क्रमकृशावग्रे वीक्ष्णौ पयधरौ ॥ सुखदौ पूर्वकाले तु पश्चादत्यन्तदुःखदों ॥ ४६॥ स्तन जडसे मोटे फिर क्रमसे माडे होते होते अग्रभाग तीक्ष्ण हों तो प्रथम अवस्थामें सुख पीछे अत्यंत दुःख देतेहैं ॥ ४६॥
स्कन्धलक्षणम् । पुत्रिणी विनतस्कंधा ह्रस्वस्कंधा सुखप्रदा॥ पुष्टस्कंधा तु कामान्धा रतिभोगसुखावहा ॥४७॥
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