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दशमः १०] भाषाटीकासमतम् ।
(७७) जिसके कंधे नम्र हों वह पुत्रवती और छोटे कंधोंसे सुखी होती है यदि स्कंधे पुष्ट हों तो वह स्त्री कामदेवसे अंधीसी हो रमणसुखसे युक्त रहती है ॥ १७॥
मदान्धा कुटिलस्कन्धा स्थूलस्कंधा च तादृशी॥ यदि लोमाकुलस्कंधा वैधव्यं द्रुतमावहेत् ॥४८॥ जिसके (स्कंध) कंधे टेढे हों वह मदसे अंधी रहती है, मोटे कंधोंवालीभी ऐसेही मदांधा रहतीहै, यदि कंधोंमें रोम बहुत हों तो शीघ्र विधवा होती है ॥४८॥
बाहुमूलक्षणम्। स्रस्तांसा संहतांसा च धन्या भवति कामिनी ॥ तुङ्गांसा विधवा ज्ञेया विमांसांसा तथैव च ॥४९॥ स्कंधोंके किनारे बाहुके जड (अंस ) चौडे हों या कडे हों तो वह कामिनी धन्या (भाग्यवती) होवै जिसके उक्तभाग ऊंचे हों अथवा ( मांसरहित ) माडे हों तो विधवा जाननी॥१९॥
कराङ्गुष्ठम्।। अंगुष्ठांगलिक युग्मं यत्पद्मकलिकासमम् ॥ बहुभोगाय नारीणां निर्मितं विधिना पुरा ॥५०॥
अंगूठा तथा दो अंगुली स्त्रियोंकी यदि कमलकी कलीके समान हों तो बहुभोग देती हैं. यह स्त्रियोंके भोगनिमित्त पहिले ब्रह्माने बनाया ऐसा जानना ॥५०॥
पाणितललक्षणम् । करतलं भुजयोर्यदि कोमलं विमलपद्मनिभं च समुन्नतम् ॥ निजपतेः कुसुमायुधवर्द्धकं निगदितं मुनिना विधिनोदितम् ॥ ५॥
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