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दशमः १.] भाषाटीकासमेतम्। बहुत रोमोंकी हो तो कुटिलस्वभाववाली और गुस्सेवाली कडे वचन कहनेवाली होवै. यदि विरलरोम तथा बडी आकृतिकी त्रिवली हो तो शुभफल देती है ॥ ३९॥
उरो लक्षणम् । लोमहीनहृदयं यदा भवेनिम्नताविरहितं समायतम् ॥ भोगमेत्य सकलं वराङ्गना सा पुनः प्रियवियोगमालभेत् ॥ ४०॥ जिस स्त्रीकी छाती रोमरहित, (समान) ऊंची नीची न हो ऊपर नीचेका( माप)परिमाण तूल अर्ज बराबर होतो वह श्रेष्ठ स्त्री समस्त भोगसुख पावै परंतु पीछे (प्रिय ) प्यारेका वियोगभी पावे॥१०॥
उद्भिनरोमहृदया स्वपति निहन्ति विस्ताररूपहृदया व्यभिचारिणी स्यात् ॥ अष्टादशांगुलमितं हृदयं सुखाय चेद्रोमशं च विषम न सुखाय किचित् ॥४१॥ जिस स्त्रीके हृदयके रोम फटेमुखके हों अथवा अकस्मात् स्वयं उखडजावें वह अपने पतिको मारती है, जिसका हृदय जितना लंबा उतनाही चौडाभी हो तो व्यभिचारिणी होतीहै. यदि हृदय १८ अंगुल हो तो सुख होताहै, यदि रोमोंसे भराहुआ तथा कहीं ऊंचा कहीं नीचाभी हो तो उसको थोडाभी सुख नहीं मिलता ॥४॥
उन्नतं पीवरं शस्तं हृदयं वरयोषिताम् ॥ अपीवरमिदं नीचं पृथुदौभाग्यसूचकम् ॥ ४२ ॥ उत्तम स्त्रियोंके हृदय ऊंचे, स्थूल शुभ होतेहैं गहरे और चिपिट हों तो दौर्भाग्य (भाग्यहीन ) करताहै ॥ ४२ ॥
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