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(७२) भावकुतूहलम्- [स्त्रीसामुदिकालंबगलो विकटो गजलोमा नैव शुभाश्चिपिटोऽपि निरुक्तः ॥२८॥
जो भग बेंतके अथवा बांसके पत्रके आकार हो अथवा(कपर) बीचमें गहरा चारों ओर ऊंचा हो तथा गलेके समान एक ओर माडा दूसरे ओर मोटा लंबा हो, (विकट) ऊंचा नीचा हो और हाथीकेसे रोम जिसपर हों वह शुभ नहीं होता ऐसेही (चिपिट) चपटा भग भी अशुभ कहाहै ॥२८॥
मृदुतरं मृदुरोमकुलाकुलं यदि तदा जघनं भगभाजनम् ॥ उत समुन्नतमायतमादरात्पतिकला कलित गदितं बुधैः ॥ २९ ॥
यदि भग कोमलतर, कोमल बालोंसे भरा हो तो वह ऐश्वर्यका (पात्र ) भोगनेवाला होता है और ऊंचा, बडा, कांतिमान् ( कलाकलित ) जिसके दर्शन वा स्पर्शसे मनकी उमंग प्रसन्नतासे उठे यह भी वैसाही है ॥२९॥
तदेव दक्षिणावर्त मांसलं शुभसूचकम् ॥ वामावर्त च नारीणां खंडितं खंडिताश्रयम् ॥३०॥ वही भग दाहिने ओर घुमा हो यद्वा भौंरा मोटा हो तो शुभफल करता है. यदि बाँये ओर घुमा हो यद्वा भौंरा तथा (खंडित) किसी जगे भंग जैसा हो तो व्यभिचारिणी करता है ॥ ३० ॥ निर्मासं कुटिलाकारं रूक्षं वैधव्यसूचकम् ॥
अतिस्थूलं महादी सद्यो दौर्भाग्यकारकम् ॥३१॥ यदि भग मांसरहित एवं कुटिलाकार, मोडवाला हो तो वैधव्य करता है. जो अतिमोटा, व बडालंबा हो तो अवश्य (दौर्भाग्य) भाग्यहीन करता है ॥३१॥
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