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दशमः १.] भाषाटीकासमेतम् । (७१)
योनिलक्षणम्। यदा गजस्कन्धसमानरूपो भगोऽथवा कच्छपष्टष्ठवेषः ॥ इलापतेः कामविनोददायी वा सोनतः सोऽपि सुताजनेता ॥ २४॥ यदि स्त्रीका (भग ) योनि हाथीके गर्दनके सदृश यद्वा कछु. आके पीठके सदृश हो तो वह राजाको कामक्रीडामें प्रसन्न करने वाली अर्थात् राजरानी होवै यदि उक्तभग ऊंचे आकारका हो तो कन्या जनने वाली होती है ॥ २४॥
अश्वत्थदलरूपो वा भगो गूढमणिःशुभः॥ चुल्लिकोदररूपो यः कुरङ्गखुरसन्निभः ॥ २५॥ रोमाकुलो दृष्टनासो विकृतास्यो महाधमः॥ कामिनां न विनोदा) भगो भवति सर्वथा ॥२६॥
अथवा भग (अश्वत्थ ) पीपल के पत्रके समान अथवा गुप्तमणिके (टोटनी)वाला हो तो शुभ होता है, जो भग चुहीके पेटके आकारका व मृगखुरसा, रोमव्याप्त, ऊँची टोटनीवाला, विकृतमुख हो, वह अधम होताहै यह भग कामियोंके विनोदका हेतु सर्वदा नहीं होताहै ॥२५॥२६॥
कामिन्याः कञ्चुकावतॊ भगो दौर्भाग्यवर्द्धकः॥ स गर्भधारणाशक्तो वक्राकारोऽपि तादृशः ॥२७॥
कामिनीका भग यदि दोनों ओर ऊंचा बीचमें गहरा हो तो दौर्भाग्य बढाता है, गर्भधारणमें असमर्थ होता है यदि ( वक्राकार) मुडा हुआ हो तोभी वैसाही फल करता है ॥२७॥
वेतसवंशदलप्रतिभासः कपररूपवदेव भगो वा ॥
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