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भावकुतूहलम् -
जानुलक्षणम् ।
भवति जानुयुगं यदि मांसलं तदतिवृत्तमतीव शुभप्रदम् ॥ भुवनभर्तुरतो विपरीत मादिभिरिदं विपरीतमुदीरितम् ॥ २० ॥
[ स्त्रीसामुद्रिक:
जिस स्त्रीके दोनों जानु मोटे, अति सुंदर गोलाकार हों वह अति शुभफल करते हैं। वह राजरानीके तुल्य होती है इससे विपरीत लक्षण हों तो फलभी विपरीत कहा है ॥ २० ॥ कटिलक्षणम् ।
समुन्नतनितंबाद्या यस्याः सिद्धगुला कटिः ॥ सा राजपट्टमहिषी नानालीभिः समावृता ॥२१॥ जिसकी कमर सिद्ध (२४) अंगुल चौडी हो तथा ( नितंब ) चूतड ऊंचे हों तो वह राजाकी पटरानी होवे और अनेक (सखी) दासियोंसे युक्त रहै ॥ २१॥
निर्मासा विनता दीर्घा चिपिटा शकटाकृतिः ॥ लघ्वी रोमाकुला नाय वैधव्यं दिशते कटिः ॥ २२ ॥ जो कमर मांसरहित, माडी, गहरी (चिपिट) बैठी हुई गाड़ीके आकारकी, छोटी और रोमोंसे भरी हुई हो वह वैधव्य देती है॥ २२ ॥ नितम्बलक्षणम् ।
सीमन्तिनीनां यदि चारुबिंबो भवेन्नितंबो बहुभो - गदः स्यात् ॥ समुन्नतो मांसल एव यासां पृथुः सदा कामसुखाय तासाम् ॥ २३ ॥ जिन भाग्यवती स्त्रियोंके चूतड रमणीय बिंबवत् हों तो बहुप्रकार भोग देते हैं. यदि ऊंचे, मोटे, बडेभी हों तो सर्वदा कामदेवको सुख देते हैं ॥ २३ ॥
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