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भावकुतूहलम् -
[ स्त्रीजातकम् -
यदि सप्तम में पापांश हो यद्वा उक्तग्रह पापांशकी सप्तममें हों तो माँ, बेटी व्यभिचारिणी हों किन्तु उसकी योनि व्रणसे वेधित रहे ॥ ३२ ॥ महराशिवशेन प्रत्येकत्रिंशांशफलानि । तत्रादौ भौमराशौ ।
यदाङ्गचन्द्रौ कुजभे कुजस्य त्रिंशांश के दुष्टतमैव कन्या ॥ मन्दस्य दासी हि गुरौ तु साध्वी मायाविनी ज्ञस्य कवेः कुवृत्ता ॥ ३३ ॥
अब ग्रह राशियोंके वशसे प्रत्येक त्रिंशांशके फल कहतें हैं इनमें प्रथम मंगलकी राशिके त्रिंशांशकों के फल हैं कि, यदि लग्न, चंद्रमा मंगलकी राशि में हो तथा मंगलके त्रिंशांशमें हों तो वह कन्या दुष्ट होवै शनि के त्रिंशांशमें दासी होवे, बृहस्पतिकेमें पतिव्रता, बुधकेमें मायावाली, शुक्रकेमें दुष्टचरितवाली होवे ॥ ३३ ॥
शुक्रराशौ ।
शुक्रभे कुजखाम्यंशे दुष्टा सौरेः पुनर्भवा ॥ गुरोर्गुणमयी विज्ञा कवेः कामातुरा भवेत् ॥ ३४ ॥ शुक्र राशिमें लग्न चंद्रमा मंगलके त्रिंशांशमें हो तो दुष्टा होवे एवं शनि के में (पुनर्भवा ) दो बार विवाही जावैं, बृहस्पतिकेमें गुणयुक्ता, बुधके में पंडिता, शुक्रके में कामातुरा होवै ॥ ३४ ॥ बुधराशौ ।
बुधभ भूमिपुत्रस्य कापटी क्लीववच्छनेः । गुरोः सती विदो विज्ञा कवेः कामातुरा भवेत् ॥ ३५ ॥ बुधके राशिमें लग्न, चंद्र, मंगल के त्रिंशांशमें हों तो कपटी होने शनिकेमें नपुंसकके तुल्य होवे, बृहस्पतिकेमें पतिव्रता, बुधकेमें बहुत विषयोंको जाननेवाली, शुक्रकेमें कामसे आतुरा होवै ॥ ३५ ॥
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