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भावकुतूहलम्- [स्त्रीजातकम्यदि जन्मसमयमें लन, चन्द्रमा पापग्रहोंके बीचमें हो शुभयहोंकी दृष्टि उनपर न हो पापयुक्तभी हों तो वह मृगाक्षी कामदेवसे चंचल होकर पितृकुल भर्तृकुल दोनोंका नाशकरै अर्थात् व्याभचारिणी होकर दोनों कुलोको डुबावै ॥ २४ ॥
व्ययेऽष्टमे भूमिसुतस्य राशावगौ सपापेभवतीह रण्डा ॥ मदे कुलीरे सखी कुजेपि धवेन हीना रमतेऽन्यलोकैः ॥२५॥ यदि मंगलकी राशि १ । ८ में राहु बारहवां वा अष्टम पापयुक्त हो तो वह स्त्री रांड होवे अथवा । सप्तमभावमें कर्कका सूर्य,मंगल सहित हो तो पतिहीन होकर अन्यपुरुषोंसे रमित रहै ॥२५॥
तनाचतुर्थ निधन व्यय वा मदालय पापयुतः कुजश्चेत् ॥ अनङ्गलीलां प्रकरोति जारैः पर्ति तिरस्कृत्य विलोलनेत्रा ॥२६॥ यदि जन्मलग्रसे चौथा, बारहवां अथवा सप्तम पापयुत मंगल हो तो वह चंचला अपने पतिका तिरस्कार करके (जार) उपपतियोंके साथ कामक्रीडा करे चंचल होवै ॥२६॥
परस्परांशोपगतौ भवेतां महीजशुक्रौ जननेङ्गनायाः॥ स्वयं मृगाक्षी ह्यभिसारिकेव प्रयाति कामाकुलितान्यगेहे ॥ २७॥
यदि स्त्रीके जन्मसमयमें मंगलके अंशका शुक शुकके अंशका मंगल हो तो वह मृगाक्षी अभिसारिके समान आपही कामातुर होकर दूसरेके घर जावै ॥२७॥
पापग्रहे सप्तमगे बलोनेऽशुभेन दृष्टे पतिसौख्यहीना ॥ स्यातां मदे भीमकवी सचन्द्रौ पत्याज्ञया सा व्यभिचारिणी स्यात् ॥ २८॥ ..
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