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(६६) भावकुतूहलम्
[स्त्रीसामुद्रिक:शुभाशुभं पुरा गीतं वेदव्यासेन धीमता ॥ प्रकाश्यते तदेवात्र नारीणामङ्गलक्षणम् ॥२॥ स्त्रियोंके लक्षणोंसे शुभ तथा अशुभ प्रथम बुद्धिमान् व्यासदेवजीने कहाहै वही यहांभी स्त्रियोंके अंगलक्षण प्रकाश किये जाते हैं ॥२॥
___ पादतललक्षणम् । युवतिपादतलं किल कोमलं सममतीव जपाकुसुमप्रभम् ॥ दिशति मांसलमुष्णमिलापतेरतिहितं बहुधर्मविवर्जितम् ॥ ३॥ स्त्रीके पैरके तलुए यदि कोमल, (सम ) सरल तथा (जपा) ओंड पुष्पके समान रक्तवर्ण, स्थूल, उष्ण और बहुत स्वेदसे रहित हो तो राजाके लिये हित करते हैं ॥३॥
कमलकम्बुरथध्वजचक्रवत्टथुलमीनविमानवितानवत्॥ भवति लक्ष्म पदे यदि योषितां क्षितिभृतां वनिता विभुतावृता ॥४॥ जिसके पैर कमल, कंबु (शंख ), रथ, ध्वजा, चक्रके समान तथा स्थूल मछली, विमान, वितान (चांदनी) के आकार चिह्न हों तो उस स्त्रीका पति राजा होवै एश्वर्यसे युक्त रहे ॥ ४ ॥
शूर्पाकारं विवर्ण च विशुष्कं परुषं तथा ॥ रूक्षं पादतलं तन्व्या दौर्भाग्यपरिसूचकम् ॥५॥ जिसके पैरके तलुए शूर्पके आकार, विवर्ण,(शुष्क ) खरदरा, करडा रूखा हो तो यह लक्षण तन्वंगीके दौर्भाग्य सूचक हैं ॥५॥
यस्याः समुन्नताङ्गुष्ठो वर्तुलोऽतुलसौख्यदः॥ शूर्पाकारा नखा यस्याः साभवेदुःखभागिनी॥६॥
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