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दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् । (६७)
जिसके पैरका अँगूठा ऊँचा, गोल हो तो अतिसौख्य देताहै, जिसके नाखून शूर्पके आकार हों वह दुःख भोगनेवाली होतीहै६॥
गमनलक्षणम् । संचलन्त्यां धराधूलिधारा यदा राजमार्गेऽबलायां बलादुच्छलेत् ॥ पांसुला सा कुलानां त्रयं सत्वरं नाशयित्वा खलैमोदते सर्वदा ॥७॥ जिस स्त्रीके सडकपर चलते समय पृथ्वीमें (धूलि ) गर्दकी धारा उडे चले वह अपतिव्रता (जारिणी ) (तीन कुल) माता, पिता, भर्ताको नाश करके सर्वदा दुष्टोंके साथ प्रसन्न रहे ॥७॥
श्लिष्टाङ्गुलीलक्षणम् । यस्या अन्योन्यमारूढाः पादांगुल्यो भवन्ति चेत्॥
सा पतीन्बहुधा हत्वा वारवामा भवेदिह ॥८॥ जिसके पैरकी एक अंगुली दूसरी अंगुलीके ऊपर चढीरहै वह बहुत पतियोंको मारके ( वारांगना ) वेश्या होती है ॥ ८॥
कनिष्ठा न स्पशेडूमि चलन्त्या योषितस्तदा ॥ सा द्रुतं स्वपति हत्वा जारेण रमते पुनः ॥९॥ जिस स्त्रीके चलते समयमें (कनिष्ठा) छोटी अंगुली पैरकी पृथ्वीको स्पर्श न करे वह शीघ्रही अपने पतिको मारकर जारसे रमित रहै ॥९॥
अनामिका च मध्याच यदि भूमि. न संस्पृशेत्॥ आद्या पतिद्वयं हन्ति चापरा तु पतित्रयम् ॥३०॥ जिस स्त्रीके पैरकी अनामिका एवं मध्यमा पृथ्वीको स्पर्श न करै इनमें से अनामिका ऊंची रहे तो दो पतियोंको, मध्यमा ऊंची रहे तो तीन पतियोंको मारे॥१०॥
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