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भावकुतूहलम्- [स्त्रीजातकमअव स्त्रियोंके विषयोग कहतेहैं-कि,जिसके जन्मसमयमें भद्रासंज्ञक ७/१२ तिथि, आश्लेषा, कृत्तिका, शततारा नक्षत्र, रवि, शनि, मंगल वार हों वह विषाख्या होती है. इस योगके तीन भेद हैं कि, द्वितीया तिथि, आश्लेका नक्षत्र, रविवार(१)सप्तमी तिथि, कृत्तिका नक्षत्र, शनिवार (२) द्वादशी तिथि, शततारा नक्षत्र मंगल वार (३) और पापग्रहराशि लग्नमें पापग्रहयुक्त तथा दो पापग्रह छठेभी हों तो वह कन्या विषाख्या होती है ॥ १५ ॥
आदित्यमूनोर्दिवसे द्वितीया भुजङ्गभे भौमदिनेम्बुजः ॥ चेत्सप्तमी वाथ रखौ विशाखा हरेस्तिथौ वापि च सा विषाख्या ॥ ४६ ॥ इनके भेद कहते हैं कि, शनिवारको द्वितीया तिथि, आश्लेषा नक्षत्र (१), मंगलवारको शततारा नक्षत्र, सप्तमी तिथि (२), रविवारको विशाखा नक्षत्र, द्वादशी तिथि (३), में जिस कन्याका जन्म हो वह विषाख्या होती है ॥ १६ ॥
धर्मगेहगते भौमे लग्नगे रविनन्दने ॥ पञ्चमे दिवसाधीशे सा विषाख्या कुमारिका॥४७॥
यदि लग्रसे नवम मंगल, लग्नमें सूर्यपुत्र (शनि ) पंचममें सूर्य, जिस कन्याका होवै वह विषाख्या (विषकन्या) होती है। १७॥
. विषाख्यालक्षणम् । विषाख्या शोकसन्तप्ता दुर्भगा मृतपुत्रिका ॥ वस्त्राभरणहीना च पुराणैरुदिता बुधैः ॥४८॥
जो कन्या उक्तप्रकारोंसे विषाख्या हो वह शोकसे संतप्त(दुर्भगा) भाग्यहीना होवै, संतान उसकी मरती रहैं वस्त्र, भूषणोंसे हीन रहै यह प्राचीन पंडितोंने कहाहै, ऐसेही विष घटिकाके जन्मवाली भी होतीहै ॥४८॥
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