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(५६) भावकुतूहलम्
[स्त्रीजातकम्सप्तमे सिंहिकापुत्रे कुलदोषविवद्धिनी ॥ नारी सुखपरित्यक्ता तुङ्गे स्वामिसुखान्विता ॥१८॥
राहु सप्तममें हो तो कुलको ( दोष) कलंक बढानेवाली, सुख रहित स्त्री होवै यदि वह राहु उच्चका हो तो भर्ताके सुखसे युक्तरहै १८
अथान्ययोगाः। मिथस्तौ शुक्राी यदि लवगतौ वीक्षणमितौ भवेतां वा लग्ने घटलवगते शुक्रभवने ॥ अनङ्गैरालीलाकलितनररूपाभिरनिशं स्थिताभिः कान्ताभिःखलु मदनशान्ति व्रजतिसा१९॥
यदि शुक्र और शनि परस्परांशक अर्थात् शनिके अंशकमें शुक्र शुक्रके अंशमें शनि हो उपलक्षणसे राशियोंमेंभी परस्पर हो तथा इनकी परस्पर दृष्टि भी होवै यद्वा शुक्रके राशि२।७ लग्नमें कुम्भांशक युक्त हों तो कामदेवकी लीलाओंसे निर्मित नररूपवाली नित्य अनेक नररूप ( मर्दके वेष) स्थित स्त्रियोंसे कामदेवको शांत करै ॥ १९॥
क्षपानाथे यस्या गतवति कुलीराङ्गमथवा मदागारं सारं सुरगुरुबुधाभ्यामपि युतम् ॥ महान्तोऽपि भ्रान्ताः कतिकति मनोजाधिकतया पुरस्तां पश्यंतो दधति परमानन्दलहरीम् ॥२०॥ जिसका चन्द्रमा लग्नमें कर्कका हो अथवा सप्तमभाव मंगल सहित हो तथा बुध बृहस्पतिसेभी युक्त हो तो अनेक बडे बडे महात्मालोगभी सम्मुख इस स्त्रीको देखकर कामदेवके अधिक होनेसे विभ्रांतमन होकर मोहित होवें ऐसे वह परम आनन्दलहरीको रूपकी छटासे धारण करनेवाली होवे ॥२०॥... ..... ... ...
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