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भावकुतूहलम् - [ अरिष्टाध्यायः ]
असुरमुखगते खलेन युक्ते तनुगविधौ सममम्बया लयारे ॥ मृतिरथ तनुगे रवौ सशस्त्रं ग्रहणगते खलसंयुतेऽपि मृत्युः ॥ ९ ॥
राहुके साथ यद्वा ग्रहणसमयका चंद्रमा पापयुक्त होकर लग्नमें हो मंगल अष्टम स्थान में हो तो मातासहित बालक मरे इस योग में यदि सूर्य भी लग्न में हो तो शस्त्रसे उनकी मृत्यु होवै सूर्य वा चंद्रमा ग्रहण समयका शनिसे युक्त लग्न से हो तौभी वही फल है ॥ ९ ॥
सबलशुभखगैर्युते न दृष्टे तुहिनकरे दिनपेऽथवा तनौ चेत् ॥ निधननवसुताश्रिताः खलाः स्युनिधनमिहाशु वदंति वै मुनीन्द्राः ॥ १० ॥ सूर्य अथवा चंद्रमा लग्न में पापयुक्त दृष्ट हो उसे बलवान् शुभग्रह न देखे न युक्त हो तथा ८ । ९ ।५ भावों में पापग्रह हों तो बालककी मुनीन्द्र शीघ्र ही मृत्यु कहते हैं ॥ १० ॥ शनिरविविधुभूमिजैः क्रमेण व्ययनवलग्रलयाश्रितैमृतिः स्यात् ॥ सबलसुरपुरोहितेन दृष्टैर्न हि मरणं गदितं तदा मुनीन्द्रैः ॥ ११ ॥
बारहवां शनि, नवम सूर्य, लग्नका चंद्रमा, अष्टम मंगल हो तो बालककी मृत्यु होवे, परंतु उक्त मृत्युकारक योगोंपर बलवान् बृहस्पतिकी दृष्टि हो तो मृत्यु नहीं होती और उपलक्षणसे दुष्टयोग शुभग्रहों की दृष्टि एवं योगसे मृत्यु नहीं करते अरिष्ट देते हैं कदाचित् उपायोंसे अरिष्टों की शांति करते हैं ॥ ११ ॥ लयमारलग्ननवधीव्ययगः खलखेचरेण सहितः सिवगुः ॥ अवलोकितो नहि युतश्च शुभर्नियतं भवेत्स मरणाय तदा ॥ १२ ॥
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