________________
( १८ )
भाषकुतूहलम् -
विधुरपि बलहीनो नष्टकान्तिर्जनन्या निधनमपि विशेषादाहुराचार्यवर्य्याः ॥ २ ॥ चंद्रमा पापांतर्गत हो तथा चंद्रमासे ४ । ७ भावों में पापग्रह हों और चंद्रमा बलरहित एवं क्षीणभी हो तो ऐसा योग जन्ममें होनेसे श्रेष्ठ आचार्योंने बालककी माताकी मृत्यु कही है ॥ २ ॥
भ्रारिष्टम |
यदा पापखेचारिणो जन्मकाले धरानन्दनाकान्तभावात्सहोत्थे ॥ तदैवाशु नाशं सहोत्थस्य धीरा मणित्थादयः प्राहुराचार्यमुख्याः ॥ ३ ॥ यदि जन्मसमयमै पापग्रह मंगलस्थितराशिसे तीसरे हों तो शीघ्रही भाइयों का नाश होवे . यह मणित्थ आदि मुख्य आचार्योंने काहै ॥ ३ ॥
[अरिष्टाध्यायः ]
मातुलारिष्टम् ।
बुधारातिभावे तु पापा भवंति वृतो ज्ञोऽपि नीचः श्रितो नष्टवीर्यः ॥ तदा मातुलानां विनाशो विशेषादिति प्राहुराचार्यवर्या नराणाम् ॥ ४ ॥ बुधसे छठे स्थान में पापग्रह हों बुध पापांतस्थ वा पापयुक्त तथा बलहीन नीचराशि अंशकमें हो तो विशेषतः मनुष्यों के ( मातुल ) मामाओं का विनाश होवै यह श्रेष्ठ आचार्यों का मत है ॥ ४ ॥ पुत्रहानियोगः ।।
बृहस्पतेः पञ्चमभावसंस्था महीजमन्दादिवाकराश्चेत् ॥ गुरोरपत्याधिपतिः सपापस्तदात्मजानां विरतिं वन्दन्ति ॥५ ॥
बृहस्पति से पंचम स्थान में मंगल, शनि, राहु, सूर्यमें से कोई भी
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com