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'सप्तमः ७]
भाषाटीकासमेतम् ।
( ३१ )
राज्यस्वामी निजोच्चे भवति तनुधनापत्यपातालकांता पुण्यानामुच्चराशौ पतय इह यदा वीर्य - वतोभवंति ॥ राजानो यस्य तस्य प्रबलबलघटादंतिघंटाधनुर्ज्या टंकारत्रातभीता जगदुदरगताः कंपभावं भजंति ॥ ८ ॥
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जिसके जन्मसमय में दशम स्थानका स्वामी अपने उच्च में हो तथा लग्न, धन, पंचम, सप्तम, चतुर्थ नवम भावोंके स्वामी अपने अपने उच्चोंमें हों अथवा बलवान् हों तो उस मनुष्यके ( प्रबल ) Mast भारी सेना ( फौज ) की घटासे एवं सेना के हाथियोंकी घंटा तथा धनुषोंकी (ज्या) चिल्ला के टंकारशब्दों के समूहसे भययुक्त होकर राजेलोग पृथ्वीके भीतर कंदरा ( खात) तैखाना आदियों में डरते कांपते हुये छिपजावे ॥ ८ ॥ येषामर्को निजोच्चे प्रभवति मकरे मंगलो वैौरभावे दैत्यज्यः कर्मगामी शनिरपि सहजे जन्ममात्रेण तेषाम् ॥ पृथ्वी सद्दानतोयार्णवजनितयशश्चंद्रकांत्यर्जुनामा मत्तान्मत्तप्रचण्डप्रबलरिपुशिरोमंडले वज्रपातः ॥ ९ ॥
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जिन मनुष्यों का सूर्य अपने उच्च ( १ ) में, मंगल मकरमें, छठा शुक्र दशम शनि तीसरा हो तो उनके जन्महीसे पृथ्वी शुभदान देनेके संकल्प के समुद्ररूपी जलसे परिपूर्ण होवे । यशरूपी चंद्रमाके कांति से अर्जुनके समान यद्वा (अर्जुनाभ) धवलिते (श्वेत, स्वच्छ ) हो जावे और ऐश्वर्यवान् तथा राजमदसे उन्मत्त अतिबलवान् बडे बडे शत्रुओंके शिरोंमें वज्रपात जैसा खटकने लगे ॥९॥
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