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(३४) भावकुतूहलम्
[रामयोगःतज्जातो रिपुपुंजभंजनकरो गन्धर्वदिव्याङ्गना
वृन्दानन्दपरो गुणवजधरो विद्याकरो मानवः॥१४॥ । यदि एक एक ग्रह एक एक स्थानों में बराबर हों जैसे मोति. योंकी माला पृथक् पृथक् एक एक दानेकी रहती है, तो इस योगको एकावली कहते हैं. इसमें जन्मा हुआ मनुष्य समस्त राजाओंके मुकुटकी शोभा देनेवाला(चूडामणि)उत्तम नग सरीखा श्रेष्ठ होता है. तथा शत्रुओंके समूहोंका भंजन करनेवाला, गंधर्वकन्या और स्वर्गकी स्त्रियोंके समूहका आनन्द करनेवाला,गुणोंके समूहको धारण करनेवाला तथा चतुर्दश विद्याओंकी खान होता है ॥१४॥
. शत्रुविजययोगः। कुलीरे कन्यायामनिमिषधनुर्युग्मभवने जनुःकाले यस्य प्रभवति नभोगो रविमुखः ॥ प्रचण्डप्रोत्तुङ्गप्रबलरिपुहन्ता क्षितिपतिः समन्तादाधिक्यं व्रजति धनदानेन महताम् ॥ १५॥
कर्क, कन्या, मीन, धन, मिथुन राशियोंमें सूर्यादि सभी ग्रह जिसके जन्मसमयमें हों वह अति प्रबल (बढीहुई) तीक्ष्णयोधाओंवाली बड़ी भारी शत्रुसेनाको जीतनेवाला राजा होताहै तथा धन देनेसे सभी प्रकार बडे बडे लोगोंसेभी अधिकता पाताहै ॥१५॥
नृपमुकुटयोगः। अथादित्यः सिंहे विधुरपि कुलीरे रविस्तो मृगे मीने जीवो हिमकरसुतो यस्य मिथुने ॥ तुलायां शुक्रश्चेदजभवनगो भूमितनयो नृबालो भूपालो नृपमुकुटभूषामणिवरः ॥ १६ ॥ जिसके जन्मसमयमें सूर्य सिंहका, चंद्रमा कर्कका, शनि,मकरका, वृहस्पति मीनका, बुध मिथुनका, शुक तुलाका भौर मंगल
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