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अष्टमः ८] भाषाटीकासमेतम् । (४९)
जिस पुरुषके हाथ वा पैरके तलुवेपर कलश, स्तंभ, घोडा, मृदंग अथवा वृक्ष, लट्ठीके चिह्न हों तो अखण्ड लक्ष्मीसे युक्त रहे यदा पंडित हो या (शौंडिक) मद्य बेचनेवाला होवै ॥ ८॥ विशालभालोऽम्बुजपत्रनेत्रः सुवृत्तमौलिः क्षितिमण्डलेशः॥आजानुबाहुः पुरुषं तमाहुः क्षोणी. भृतां मुख्यतरं महान्तः॥९॥ जिसका (भाल) माथा बडा हो, नेत्र कमलदलके समान हों, शिर सुहावना वृत्ताकार हो तो पृथ्वीमंडलका राजा होवे और जिसके खडे हुयेमें हाथ सीधे नीचे छोडे घुटनोंपर्यंत पहुंचे तो राजाओंमें मुख्य बडा राजा होवै ॥९॥
नाभिर्गभीरा सरला च नासा वक्षःस्थलं रत्नशिलातलाभम् ॥ आरक्तवर्णों खलु यस्य पादौ
मृदू भवेतां स नृपोत्तमः स्यात् ॥ १०॥ जिसकी नाभि (गंभीर ) गहरी, नाक सरल, छाती रत्नशिलाके समान स्वच्छ, पैर लालरंगके तथा कोमल हों तो श्रेष्ठराजा होवे ॥१०॥
तिललक्षणम्। राजते करगो यस्य तिलोऽतुलधनप्रदः ॥ तथा पादतले पुंसां वाहनार्थसुखप्रदः ॥११॥ जिसके दाहिने हाथमें तिलका चिह्न हो उसे असंख्य धन देता हे एवं पैरके तलुवेमें हो तो वाहन और धनका सुख देवे ॥११॥ राजवंशप्रजातानां समस्तफलमीदृशम् ॥ अन्येषामल्पता याति तथा व्यक्तं सुलक्षणम्॥१२॥ इति भावकुतूहले सामुद्रिकलक्षणाध्यायोऽष्टमः ॥ ८॥
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