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(४८) भावकुतूहलम्- [सामुदिकःआकार हो वह यशस्वी होताहै। अपने वंशका भूषण होताहै तथा स्त्री भूषण, धनसे युक्त रहताहै ॥४॥
वैसारिणो वाऽऽतपवारणो वा चेद्वारणो दक्षिणपाणिमध्य॥ सरोवरं चाङ्कुश एव यस्य वीणा च राजा भुवि जायते सः॥५॥ जिस मनुष्यके दाहिने हाथमें मछली, छत्र, हाथी, तालाव, अंकुशमेंसे कोई भी चिह्न हो अथवा वीणाका चिह्न हो वह पृथ्वी में राजा होवै ॥५॥ मुसलशैलकृपाणहलाङ्कितं करतलं किल यस्यस वित्तपः ॥ कुसुममालिकया फलमीदृशं नृपति
व नृपालभवे यदा ॥६॥ जिसका हाथ मूसल, शैल, खड्ग, हलके चिह्नसे चित्रित हो वह धनका स्वामी होता है,यदि पुष्पमालाका चिह्नभी होतोभी धनवान् होता है, यदि यहचिह्न राजवंशीके हों तो अवश्य राजा होता है॥६॥
. परमलक्ष्मीप्राप्तिचिह्नम् । करतलेऽपिच पादतले नृणां तुरगपङ्कजचापरथाइवत् ॥ ध्वजरथासनदोलिकया समं भवति लक्ष्म रमापरमालये ॥ ७ ॥ जिन मनुष्योंके हाथवा पैरके तलेमें घोडा, कमल, धनुष, चक्र, ध्वजा, रथ, सिंहासन, डोलीके तुल्य चिह्न हों तो उसके घरमें परमलक्ष्मी सदा रहै ॥ ७॥
अखण्डलक्ष्मीप्रातिचिह्नम् । | कुंभास्तंभो वा तुरङ्गो मृदङ्गः पाणावंघौ वा द्रुमो यस्य पुसः ॥ चञ्चद्दण्डोऽखण्डलक्ष्म्या परीवः किंवा सोऽयं पण्डितः शौण्डिको वा ॥८॥
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