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भावकुतूहलम् -
[ राजयोग:
जिसके जन्म में केमद्रुमयोग हो वह इंद्रका प्यारा पुत्रभी हो तो भी स्त्री पुत्रोंसे रहित होकर विदेश भ्रमण करै, धर्मसे रहित रहै, कलाहीन, रोगोंसे भयवान् नानाप्रकारकी मानसी व्यथा संतापसहित और संसार में संतोषहीन रहै ॥ ४५ ॥
केमदुमभङ्गः ।
शुक्रेज्यसौम्यसहितोऽपि च कण्टकस्थो वा पूर्णबिंब इह यस्य भवेन्मृगाङ्कः ॥ केन्द्राणि खेचरयुतानि तदा नराणां केमद्रुमोद्भवफलं विफलत्वमीयात् ॥ ४६ ॥
उक्त केमद्रुमयोगका भंग कहते हैं कि, जिसका चंद्रमा, शुक, बृहस्पति, बुधमेंसे किसी से युक्त हो अथवा केंद्र में हो अथवा पूर्ण मंडल हो यद्वा उसके केंद्रों में ग्रह हो तो मनुष्योंको केमद्रुम योगोक्त फल केमद्रुम हुएमें भी निष्फल होजावे ॥ ४६ ॥
हृदयोगः ।
जनुषि नीचगताः सकला ग्रहा यदि भवन्ति तदा हृदसंज्ञकः ॥ हृदभवो विकलो विभवोनितो रिपुहतो नितरां शठतायुतः ॥ ४७ ॥
जन्मसमय में यदि समस्तग्रह नीच राशिअंशकों में हो तो हदयोग होता है, ह्रदयोग में जिसका जन्म हो वह (विकल) कलारहित ऐश्वर्यहीन शत्रुसे ( पराजित ) हाराहुआ ( शठ ) धूर्त वा वंचकभी होवे ॥ ४७ ॥
फणियोगः ।
घटगते तपने क्रियगे शनावलिगते च विधौ निजनीचभे ॥ भृगुसुते जनने फणिसंज्ञको विकलितं कुरुते नरपुङ्गवम् ॥ ४८ ॥
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