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(३८) भावकुतूहलम्
[राजयोग:कुरतुल्यराजयोगः। यदा माने याने भवति मदने वासवगुरौ स्वतुङ्गे वा पढेरुहनिकरबन्धावपि भृशम् ॥ भयत्राता दाता निगमविहिताचारचतुरो गुणवातैनम्रो धनपतिसमानो विजयते ॥२५॥ यदि १०।४।७ भावोंमेंसे किसीमें बृहस्पति अपने उच्चका हो और उसके साथ विशेषतः चन्द्रमाभी हो तो भयसे रक्षा करनेवाला बहुत दान देनेवाला, शास्त्रोक्त आचार करनेमें चतुर, अनेक शौय्यौदा-दिगुणोंसे नम्र और धनमें कुबेरके समान जयशालीराजा होवे ॥२५॥
केवलनृपबालकविचारः। । एतेषु योगेषु नरो नृपालो भवेदलं नीचकुलप्र
जातः ॥ नृपालबालोऽपि च वक्ष्यमाणैः सुयोगजातैरिति संप्रवक्ष्ये ॥ २६॥ . इतने जो राजयोग कहे हैं इनमें नीचकुलका उत्पन्न पुरुषभी राजा हो जाता है. ये सर्वसाधारणके लिये तुल्य है और राजाका पुत्र जिसका राजा होना संभव है वह थोडे भी राजयोगसे राजा होता है ऐसे अच्छे सुयोग आगे ग्रन्थकर्ता कहते हैं ॥२६॥
मृगे विलये रविजे कुलीरे दिवाकरे चन्द्रयुते प्रमूतौ ॥ कुजे यदाये भृगुजेऽष्टमस्थे भवेत्रपालो नृपवंशजातः॥
यदि जन्ममें मकर लग्र हो, शनि कर्कमें, सूर्य पञ्चममें हो,चंद्रमा भी साथ हो तथा मङ्गलटका ग्यारवहवें भावमें, शुक्र सिंहकाअष्टम, जन्ममें हो तोराजपुत्र राजा होवे अन्यकुलोत्पन्न कुलाधिक होवे२७
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