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सप्तमः ७ ]
भाषाटीकासमेतम् ।
यदा कर्मस्वामी सुतभवनगामी शुभयुतः सुतेशः कोदण्डे भवति भविनो यस्य जनने ॥ भयातीतो भोगी भवति चिरजीवी बहुगुणी मतङ्गालीगन्ता रिपुनिकरहन्ता नरपतिः ॥ २२ ॥ जिस मनुष्य के जन्मसमय में दशमेश पंचम भाव में शुभग्रहयुक्त हो तथा पंचमेश धनराशिकाही यद्वा दशम हो वह भयरहित तथा सुखभोग भोगनेवाला, दीर्घायु, बहुतगुणवान् होवे. हाथियोंके झुंड उसकी सवारीमें रहैं वह शत्रुसमूहको मारनेवाला राजा होवे ॥ २२ ॥ धनागारस्वामी भवति यदि पारावतपदे विशालं भूपालं कलयति नृबालं बहुबलम् ॥ अरातीभवाताङ्कुशमनिशमानन्दनिरतं नितान्तं श्रीमन्तं विविधधनदानोद्यतमलम् धनभावका स्वामी यदि पारावतांशमें हो तो मनुष्यके बालकको बहुत बडा राजा करता है कि, जो शत्रुरूपी हाथी समूहोंके ऊपर अंकुशतुल्य रहता है. सर्वदा प्रसन्न, सर्वदा धन राज्यलक्ष्मीसे युक्त रहता है अनेकप्रकारसे (उदार) धन देने में निश्चय तत्पर रहता है२३ देवलोकलवगो निशाकरात्पुण्यराशिपतिरिन्दुकान्तिभाक् ॥ गोगजव्रजतुरङ्गमण्डलीमण्डितो मणिगणैरिलापतिः ॥ २४ ॥
॥२३॥
नवमभावेश चन्द्रमासे २१ वें अंशमें हो तथा चन्द्रमा पूर्णमूर्ति होवे तो वह गौ, हाथियोंके समूह घोडाओंके मण्डलीसे शोभायमान (मणि) रत्नोंके समूहसे युक्त पृथ्वीका पति होवे ॥ २४ ॥
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