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सतमः ७] भाषाटीकासमेत् । (४१) यदि जन्ममें बृहस्पति मकरराशिको छोडके अन्य किसी राशिका लग्नमें हो तो निश्चय करके राजपुत्र राजा होता है ऐसेही चंद्रमा अपने नीच (८) को छोडकर पूर्णकला हो लग्न अथवा अन्य केंद्रोंमें हो तो राजपुत्रको राजा करताहै ॥ ३५ ॥
सुखागारस्वामी भवति नवमे वाथ दशमै
सुख वा लग्ने वा हितलवगतो वा शुभखगैः॥ । युतो दृष्टो दन्तावलतुरगयानेन नितरां
जनानामागारं कनकमणिसंधैः परिवृतम् ॥३६॥
जन्ममें यदि चतुर्थभावका स्वामी नवमस्थानमें अथवा दशममें, चतुर्थमें, लग्नमें हो परंतु मित्रस्वांशकमें हो शत्रुके वर्गमें न हो अथवा शुभग्रहोंसे युक्त दृष्ट हो तो हाथी घोडाओंकी सवारी नित्य उसके रहे तथा घर सुवर्ण एवं माणिक्य और रत्नसमूहोंसे युक्तरहे ३६
पंचमे भवति कर्मभावपे कान्तिभाजि गजवाजिजं सुखम् ॥ सर्वतोऽस्य विदिता ततो भवेदादिगन्तमतुला यशोलता ॥ ३७॥ . दशमभावेश पंचमस्थानमें उदयी हो तो हाथी घोडाका सुख सर्वप्रकारसे होवै और उसकी निर्मल कीर्ति दिशाओंके अंपतर्यंत पहुँचे ॥ ३७॥
अथ चन्द्रयोगाः। भवति चन्द्रमसो दशमाधिपो जनुषि केन्द्रनवद्विसुतोपगः ॥ अतिविचित्रमणिबजमाण्डतो वसुमतौ वसुभूषणसंयुतः ॥ ३८॥
अब चंद्रमासे योग कहते हैं-यदि जन्मसमयमें चंद्रमासे दशम भानेश केंद्र (१।४।७।१०) नव ९ द्वि २ सुत ५भावमें हो तो
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