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(३०) भावकुतूहलम्
[राजयोगः। तस्यालं शिरसा वहति वसुधाधीशा:सदाशासन
ह्यानंदाद्विकचारविन्दकलिकामालामिव प्रायशः॥५ कन्याका बुध लग्नमें, बृहस्पति मीनका सप्तम हो, सूर्य, मंगल किसी स्थानमें बलवान हों, शनि कर्कका, शुक धनका हो ऐसे राजयोगमें जिसका जन्म हो उसकी आज्ञा (हुकुम) को राजालोग सर्वदा आनंदपूर्वक ऐसे ग्रहण करते हैं जैसे खिलेहुये कमलोंकी मालाको विशेषतासे गलेमें धारण प्रसन्नतासे करते हैं ॥५॥
भाग्ये भानुसुतो मृगे धरणिजो जीवज्ञशुकाः सुते । तिष्ठति प्रबला दिवाकरकरव्यासंगमुक्ता यदा ॥ । तत्रोद्भूतजनस्य यानसमये प्रोत्तुङ्गराजिवज। व्यस्तन्यस्तपदप्रचाररजसाच्छन्नं नभोमण्डलम६॥
नवम स्थानमें शनि मकर राशिका मंगल,तथा बृहस्पति, बुध, शक्र पंचम हों और उक्तग्रह बलवान हों सूर्यकिरणोंके व्यासंगसे मुक्त हों अर्थात् अस्तंगत न हों उदयी हों ऐसे योगमें जिस किसीका जन्म हो तो उसकी सवारी निकलने में इधर उधरसे जो साथ चलनेवाले (जलवेदार ) हैं उनकी पंक्तियोंके उलटे सीधे पैर पृथ्वीपर रखनेसे जो (रज ) धूलि उडती है उससे आकाशभी ढकजावे इतना बडा राजा होवै ॥६॥
यदि तुलामकराजकुलीरभे रविमुखाः सकला विलसति चेत् ॥ इह चतुष्कमहोदधिसंज्ञकः सुरपतेः समतां तनुते नृणाम् ॥ ७॥ यदि ७।१०।१।४ राशियोंमें समस्तसूर्यादिग्रह हों तो इस योगमें जन्मनेवाला मनुष्य चार समुद्रपर्यंतके राजाकी तुल्यता पावे ॥७॥
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