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चतुर्थः ४ ]
आपाटीकासमेतम् ।
(१७.)
चंद्रमा पापग्रहसहित ८।७।१।९।५ । १२ मेंसे किसी भावमें हो तथा उसपर शुभग्रहकी दृष्टि न हो न उसके साथ शुभ ग्रह हो तो मृत्यु निश्चय करके शीघ्र ही होती है ॥ १२ ॥ बलियोगकारकखगाश्रित जानिभे तनावपि यदास्ति विधुः ॥ बलसंयुतः खलजदृक्सहितः शरदन्तरेव मृतिदः स तदा ॥ १३ ॥
इति भावकुतूहले बालारिष्टाध्यायः ॥ ३ ॥
उक्त योगों में से जिनके फलका समय नहीं कहा गया उनके लिये कहते हैं कि - बलवान् योगकारक ग्रह जिसमें बैठा है उसपर जब बली चंद्रमा आवै अथवा जन्मराशिपर जब आवै अथवा लग्नशारी पर आवै परंतु इसपर पापग्रहकी दृष्टि या पापग्रह युक्त हो तो उस समय अरिष्टयोगका अरिष्ट होता है यह विचार एकवर्षके भीतर है ऊपर नहीं ॥ १३ ॥
इतेि भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां बालारिष्टाध्यायीः ॥ ३ ॥
चतुर्थोऽध्यायः । अथ पित्ररिष्टम् |
आदित्याद्दशमे पापः पीडितो दशमाधिपः ॥ तदा पितुर्महाकष्टं निधनं वेति कीर्तितम् ॥ १॥ सूर्यसे दशम पापग्रह हो तथा लनसे दशमभावका स्वामी (पीडित) पापयुक्त हो तो बालकके पिताको बडा कष्ट वा मृत्यु होवे ॥ १
मात्ररिष्टम् ।
। भवति यदि शशाङ्कः पापयोरन्तराले जनुषि सुखनगस्थैः पापखेटैः शशाङ्कात् ॥
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