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तृतीयः ३
भाषाटीकासमतम् ।
(१५)
वर्ष जीवता है
चंद्रमा छठा आठवां पापग्रहों से युक्त वा दृष्ट हो तो शीघ्र मृत्यु देता है, यदि वह शुभग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो ८ वर्ष पर्यंत बचता है, यदि शुभ और पाप दोन हूंसे युक्त दृष्ट हो तो यह मुनियोंका निरूपण किया हुआ है ॥ ५ ॥ अरिविरतिगते शुभे च दृष्टे बलसहिते समायुः ॥ मदनसदनगेऽपि लग्ननाथे खलविजिते ध्रुवमस्य मासमायुः ॥ ६ ॥
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छठे आठ में ही शुभग्रह हो उसे बलवान् पापग्रह देखे उपलक्षणसे युक्तभी हों तो उस बालककी एकही महीने की आयु हो । तथा लग्नेश सप्तम पापग्रहास (विजित) युद्ध में हाराहुआ वा नीचादि निर्बल होकर पापपीडित हो तो निश्चय वही फल जानना ॥ ६ ॥ कृशशशिनि तनौ खलेष्टकेन्द्रे मृतिरथ शीतरुचौ खलान्तराले ॥ मुनिहिबुकलय स्थितेऽपि लगे मुनिलयगैश्च सहाम्बया खलैः स्यात् ॥ ७ क्षीण चंद्रमा लग्न में, पापग्रह आठवें तथा केंद्रों में हों तो शीघ्र मृत्यु हो और चंद्रमा पापग्रहों के बीच में होकर भी है । ७ । ८ - ४ में से किसीभावमें हों तथा ७ । ८ भावों में पापग्रहभी हों तो वह बालक मातासहित मरजाव ॥ ७ ॥
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भविरतिगतशोभनैरदृष्टे शशिनि नवेषुगतैः खलै मृतिः स्यात् ॥ तनुगत हम गौ खले नगस्थे मृतिरुदिता मुनिभिः शिशोरवश्यम् ॥ ८ ॥
चन्द्रमा पर लग्न और अष्टम स्थान गत शुभग्रहों की दृष्टि न हो तथा ९।५ भावों में पापग्रह हों तो शीघ्रदी बालककी मृत्यु हो और चंद्रमा लग्नमें पापग्रह सप्तम में हो तो मुनियोंने अवश्य बालककी मृत्यु कही है ॥ ८ ॥
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